Saturday, September 7, 2013

रेत से बुत ना बना ऐ मेरे अच्छे फनकार

रेत से बुत ना बना ऐ मेरे अच्छे फनकार,
एक लम्हे को ठहर मैं तुझे पत्थर ला दूं.....

मैं तेरे सामने अम्बार लगा दूं लेकिन
कौन से रंग का पत्थर तेरे काम आएगा
सुर्ख पत्थर जिसे दिल कहती है ये बेदिल दुनिया
या वो पथराई हुई आंख का नीला पत्थर,
जिस में सदियों के तहय्युर के पड़े हो डोरे...

क्या तुझे रूह के पत्थर की ज़रूरत होगी,
जिस पे हक बात भी पत्थर की तरह गिरती है...

इक वो पत्थर है जिसे कहते है तहजीब-ए-सफ़ेद,
उसके मरमर में सियाह खून झलक जाता है...
इक इन्साफ का पत्थर भी तो होता है मगर,
हाथ में तेशा-ए-ज़र हो तो हाथ आता है...

जितने मेयार है इस दौर के सब पत्थर है,
शेर भी रक्स भी तस्वीर-ओ-गिना भी पत्थर...
मेरे इलहाम तेरा ज़हन-ए-रसा भी पत्थर,
इस ज़माने में हर फन का निशां पत्थर है,
हाथ पत्थर है तेरे, मेरी जुबां पत्थर है

रेत से बुत ना बना ऐ मेरे अच्छे फनकार,

एक लम्हे को ठहर मैं तुझे पत्थर ला दूं.....

------------- अहमद नदीम कासमी.

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