Wednesday, September 25, 2013

तू बहुत दूर, बहुत दूर गया था मुझसे

दश्त-ए-दरिया के उस पार कहां तक जाती....
घर की दीवार थी, दीवार कहां तक जाती....

मिट गई दीदार की हसरत भी रफ्ता-रफ्ता,
हिज्र में हसरत-ए-दीदार कहां तक जाती....

थक गए होंठ भी तेरा नाम लेते लेते,
एक ही लफ्ज़ की तकरार कहां तक जाती....

रहबर उसको सराबों में लिए फिरते है,
खलकत-ए-शहर की बीमार कहां तक जाती....

हर तरफ हुस्न के बाज़ार लगे थे यारो,
हर तरफ चश्म-ए-खरीदार कहां तक जाती....

तू बहुत दूर, बहुत दूर गया था मुझसे,
मेरी आवाज़, मेरे यार कहां तक जाती....

------------ अज्ञात.

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