Wednesday, September 25, 2013

किसी के वास्ते खुद को संभाल रक्खा है

बिखर ना जाए कहीं ये ख़याल रक्खा है....
किसी के वास्ते खुद को संभाल रक्खा है....

हमारे हंसने हंसाने से यूं फरेब ना खा,
के हमने दर्द का दरिया खंगाल रक्खा है....

जुदा ही होना है तुम को तो जल्द हो जाओ,
न जाने अश्कों को कैसे संभाल रक्खा है....

तुम्हारा लम्स अकेले में हम को छूता है,
तो नाम हिज्र का हम ने विसाल रक्खा है...

वफ़ा है बाकी हमारे ही दम से दुनिया में,
तुम्हारा नाम तो यूं ही उछाल रक्खा है...

जवाब देते नहीं बन रहा है आज हमसे,
ये उसकी आंखों में कैसा सवाल रक्खा है....

---------- अज्ञात.

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