ठोकर लगी तो अपने मुकद्दर पे जा गिरा...
फिर यूं हुआ के आईना पत्थर पे जा गिरा...
एहसास-ए-फ़र्ज़ जब भी हुआ नींद आ गई,
चलना था पुल-सरात पे, बिस्तर पे जा गिरा...
खुशबू कसूरवार नहीं, उसको छोड दो,
मैं फूल तोड़ते हुए खंजर पे जा गिरा...
सहराओं में फिरता रहा पानी की जुस्तजू लिए,
जब प्यास मर गई तो समंदर पे जा गिरा....
-------------- अज्ञात.
फिर यूं हुआ के आईना पत्थर पे जा गिरा...
एहसास-ए-फ़र्ज़ जब भी हुआ नींद आ गई,
चलना था पुल-सरात पे, बिस्तर पे जा गिरा...
खुशबू कसूरवार नहीं, उसको छोड दो,
मैं फूल तोड़ते हुए खंजर पे जा गिरा...
सहराओं में फिरता रहा पानी की जुस्तजू लिए,
जब प्यास मर गई तो समंदर पे जा गिरा....
-------------- अज्ञात.
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