हैदर फिल्म की काफी सारी समीक्षाएं पढ़ ली फेसबुक पर. कुछ मित्रों ने
बहुत ज्यादा सराहा फिल्म को तो कुछ लोगों ने जम के मजम्मत की. हम ने तो
देखी ही नहीं तो क्या कह सकते हैं ! लेकिन विशाल भारद्वाज का पिछला रिकॉर्ड
देखते हुए इतना तो सेफली कहा जा सकता है कि यकीनन देखने लायक होगी. जब तक
इसे देखने का मौका नहीं मिल जाता हम ने इसका म्यूजिक सुनने की ठानी. पूरा
अल्बम डाउनलोड कर लिया. और यकीन जानिये दिल खुश हो गया. बहुत दिनों बाद ऐसा
एक अल्बम हाथ लगा जिसके एक दो नहीं लगभग सभी गीत बेहद पसंद आये. आइये नज़र
डालते हैं.
1) गुलों में रंग भरे--- बिलाशक इस अल्बम का सब से शानदार गीत फैज़ अहमद फैज़ की ये ग़ज़ल ही है. हालांकि मेहंदी हसन समेत तमाम दिग्गजों ने इसे गा कर जिस मुकाम तक पहुंचाया है वहां तक पहुंचना नामुमकिन ही है, फिर भी अरिजीत सिंह की आवाज़ में इसे सुनना शानदार अनुभवहै. अरिजीत सिंह ने इसे बहुत मनोयोग से गाया है. इस ग़ज़ल में गिटार का मुक्त प्रयोग इसे नयी पीढ़ी से और ख़ास तौर से अरिजीत के प्रशंसकों से इंस्टेंटली जोड़ने में सक्षमहै. कुल मिलाकर एक बेहतरीन गीत.
2) बिस्मिल ----- वैसे तो किसी गीत को पसंद करने के लिए उसका सुखविंदर की आवाज़ में होना ही काफी है. उस पर अगर शानदार कम्पोजीशन और मानीखेज लफ़्ज़ों का साथ हो तो बात ही क्या ! इसे सुन कर क़र्ज़ फिल्म के मशहूर गीत ‘एक हसीना थी’ की याद आना लाज़मी है. गीत के मार्फ़त कहानी सुनाने का ये अंदाज़ मनमोहक है. सुखविंदर के बारे में क्या कहना ! वो जब भी गाते हैं कमाल कर देते हैं. हाई पीच के गाने गाने में उनका कोई सानी नहीं. अद्भुत गायकी के धनी हैं वो. ये गीत बेशक उनके गाये छैयां छैंया जैसे मास्टरपीस गीतों की पंक्ति में शामिल होगा. इसका पार्ट टू ‘एक और बिस्मिल’ के नाम से है, वो भी एक बेहतरीन प्रयोग है.
3) दो जहान ----- इसके बाद इस अल्बम से मेरा पसंदीदा गीत है वेटरन गायक सुरेश वाडकर का गाया ‘वो मेरे दो जहान साथ ले गया’. हालांकि इसे कबूलना थोडा शर्मिंदगी भरा होगा लेकिन इसे सुन कर मेरी आँखों में इंस्टेंटली आंसू आ गए. ‘वो बेपनाह प्यार करता था मुझे, गया तो मेरी जान साथ ले गया’ जैसे शब्द सिहरन पैदा कर देते हैं. गुलज़ार के शब्दों का तिलिस्म आपको जकड़ लेता है. सुरेश वाडकर को एक ज़माने के बाद सुनना बहुत अच्छा लगा. कश्मीरी लोक गीत को श्रद्धा कपूर ने पूरी इमानदारी से गाया है और वो हिस्सा भी अच्छा बन पड़ा है. कुल मिला कर बार बार सुना जा सकने वाला गीत. ख़ास तौर से रात की तनहाई में.
4) आज के नाम ----रेखा भारद्वाज के लिए मैं एक ही बात कहना चाहती हूँ. रेखा अगर ग्रोसरी की लिस्ट भी पढेगी तो वो भी सुर में होगी और सुनने वाले को असीम आनंद की प्राप्ति होगी. बेहद टैलेंटेड रेखा जी की आवाज़ में ये गीत अपने बेटे, पति या भाइयों को खो चुकी तमाम बेवाओं, ब्याहताओं, बहनों, बेटियों को समर्पित है. जो चले गए हैं उनसे ज्यादा बड़ी ट्रेजेडी पीछे रहने वालों की होती है. इस तल्ख़ हकीकत को कलमबद्ध करता ये गीत क्रूर होने की हद तक ईमानदार है. रेखा जी ने गाया भी शानदार ढंग से है. ये गीत सुन कर गुज़र जाने के लिए कतई नहीं है. इसे सुन कर थमना होगा. सोचना होगा. और हो सके तो कुछ अप्रिय सवालातों से रूबरू भी होना होगा.
“जिन की आँखों के गुल,
चिलमनों और दरीचों की बेलों पे,
बेकार खिल खिल के मुरझा गए हैं
उन ब्याहताओं के नाम......”
ऐसे अल्फाज़ थर्रा देते हैं. रेखा जी का उर्दू डिक्शन भी शानदार है. एक बेहतरीन तोहफा..
5) झेलम ---- इस गीत को विशाल भारद्वाज ने खुद गाया है. शांत गति से बहते झरने की तरह ये गीत आपको कश्मीर की वादियों में ले जाता है. विशाल एक मल्टीटैलेंटेड आर्टिस्ट हैं इसमें कोई शक नहीं. उनकी धीरगंभीर गायकी इस गीत को एक अद्भुत वलय प्रदान करती हैं. जितनी उम्दा गायकी, उतना ही उम्दा संगीत. कानों को सुहाना लगने वाला गीत.
6) सो जाओ ----कश्मीरी फोक सिंगरों द्वारा गाया गया ये गीत जीवन की क्षणभंगुरता की तरफ मजबूत इशारा करता है. गुलज़ार साहब द्वारा लिखे डार्क शेड लिए लफ्ज़ एक अनोखे वातावरण के निर्माण में सक्षम है. इसी गीत का एक रॉक वर्शन भी है. जिसे विशाल ददलानी ने ज़बरदस्त तरीके से गाया है.
7) खुल कभी तो ----अरिजीत सिंह को विशाल भारद्वाज ने दुबारा इस्तेमाल किया है इस शानदार प्रेम गीत में. गुलज़ार के शब्दों के बारे में कुछ कहने की जरुरत ही नहीं है. इस में एक जगह आये ‘झुक के जब झुमका मैं चूम रहा था, देर तक गुलमोहर झूम रहा था’ सुनकर मुझे दुष्यंत कुमार और उनकी वो प्रसिद्द ग़ज़ल बरबस याद आई. बेहद उम्दा गीत.
कुल मिलाकर हैदर एक बेहतरीन संगीत अल्बम लगा मुझे. विशाल भारद्वाज की फिल्मों में संगीत पक्ष हमेशा ही सशक्त रहा करता है. हैदर भी इसमें अपवाद नहीं है. एक बेहद शानदार संगीत के निर्माण के लिए विशाल, गुलजार और टीम को दिल से बधाई. हैदर को सुनने की इच्छा हो तो वक्त निकालिएगा दोस्तों. ये हड़बड़ी में सुना जाने वाला संगीत कतई नहीं है. इसे थम कर सुनना होगा. हाँ, अगर ‘चार बोतल वोडका, काम मेरा रोज़ का' आपका फेवरेट गीत है तो इस अल्बम से दूर ही रहिये.
1) गुलों में रंग भरे--- बिलाशक इस अल्बम का सब से शानदार गीत फैज़ अहमद फैज़ की ये ग़ज़ल ही है. हालांकि मेहंदी हसन समेत तमाम दिग्गजों ने इसे गा कर जिस मुकाम तक पहुंचाया है वहां तक पहुंचना नामुमकिन ही है, फिर भी अरिजीत सिंह की आवाज़ में इसे सुनना शानदार अनुभवहै. अरिजीत सिंह ने इसे बहुत मनोयोग से गाया है. इस ग़ज़ल में गिटार का मुक्त प्रयोग इसे नयी पीढ़ी से और ख़ास तौर से अरिजीत के प्रशंसकों से इंस्टेंटली जोड़ने में सक्षमहै. कुल मिलाकर एक बेहतरीन गीत.
2) बिस्मिल ----- वैसे तो किसी गीत को पसंद करने के लिए उसका सुखविंदर की आवाज़ में होना ही काफी है. उस पर अगर शानदार कम्पोजीशन और मानीखेज लफ़्ज़ों का साथ हो तो बात ही क्या ! इसे सुन कर क़र्ज़ फिल्म के मशहूर गीत ‘एक हसीना थी’ की याद आना लाज़मी है. गीत के मार्फ़त कहानी सुनाने का ये अंदाज़ मनमोहक है. सुखविंदर के बारे में क्या कहना ! वो जब भी गाते हैं कमाल कर देते हैं. हाई पीच के गाने गाने में उनका कोई सानी नहीं. अद्भुत गायकी के धनी हैं वो. ये गीत बेशक उनके गाये छैयां छैंया जैसे मास्टरपीस गीतों की पंक्ति में शामिल होगा. इसका पार्ट टू ‘एक और बिस्मिल’ के नाम से है, वो भी एक बेहतरीन प्रयोग है.
3) दो जहान ----- इसके बाद इस अल्बम से मेरा पसंदीदा गीत है वेटरन गायक सुरेश वाडकर का गाया ‘वो मेरे दो जहान साथ ले गया’. हालांकि इसे कबूलना थोडा शर्मिंदगी भरा होगा लेकिन इसे सुन कर मेरी आँखों में इंस्टेंटली आंसू आ गए. ‘वो बेपनाह प्यार करता था मुझे, गया तो मेरी जान साथ ले गया’ जैसे शब्द सिहरन पैदा कर देते हैं. गुलज़ार के शब्दों का तिलिस्म आपको जकड़ लेता है. सुरेश वाडकर को एक ज़माने के बाद सुनना बहुत अच्छा लगा. कश्मीरी लोक गीत को श्रद्धा कपूर ने पूरी इमानदारी से गाया है और वो हिस्सा भी अच्छा बन पड़ा है. कुल मिला कर बार बार सुना जा सकने वाला गीत. ख़ास तौर से रात की तनहाई में.
4) आज के नाम ----रेखा भारद्वाज के लिए मैं एक ही बात कहना चाहती हूँ. रेखा अगर ग्रोसरी की लिस्ट भी पढेगी तो वो भी सुर में होगी और सुनने वाले को असीम आनंद की प्राप्ति होगी. बेहद टैलेंटेड रेखा जी की आवाज़ में ये गीत अपने बेटे, पति या भाइयों को खो चुकी तमाम बेवाओं, ब्याहताओं, बहनों, बेटियों को समर्पित है. जो चले गए हैं उनसे ज्यादा बड़ी ट्रेजेडी पीछे रहने वालों की होती है. इस तल्ख़ हकीकत को कलमबद्ध करता ये गीत क्रूर होने की हद तक ईमानदार है. रेखा जी ने गाया भी शानदार ढंग से है. ये गीत सुन कर गुज़र जाने के लिए कतई नहीं है. इसे सुन कर थमना होगा. सोचना होगा. और हो सके तो कुछ अप्रिय सवालातों से रूबरू भी होना होगा.
“जिन की आँखों के गुल,
चिलमनों और दरीचों की बेलों पे,
बेकार खिल खिल के मुरझा गए हैं
उन ब्याहताओं के नाम......”
ऐसे अल्फाज़ थर्रा देते हैं. रेखा जी का उर्दू डिक्शन भी शानदार है. एक बेहतरीन तोहफा..
5) झेलम ---- इस गीत को विशाल भारद्वाज ने खुद गाया है. शांत गति से बहते झरने की तरह ये गीत आपको कश्मीर की वादियों में ले जाता है. विशाल एक मल्टीटैलेंटेड आर्टिस्ट हैं इसमें कोई शक नहीं. उनकी धीरगंभीर गायकी इस गीत को एक अद्भुत वलय प्रदान करती हैं. जितनी उम्दा गायकी, उतना ही उम्दा संगीत. कानों को सुहाना लगने वाला गीत.
6) सो जाओ ----कश्मीरी फोक सिंगरों द्वारा गाया गया ये गीत जीवन की क्षणभंगुरता की तरफ मजबूत इशारा करता है. गुलज़ार साहब द्वारा लिखे डार्क शेड लिए लफ्ज़ एक अनोखे वातावरण के निर्माण में सक्षम है. इसी गीत का एक रॉक वर्शन भी है. जिसे विशाल ददलानी ने ज़बरदस्त तरीके से गाया है.
7) खुल कभी तो ----अरिजीत सिंह को विशाल भारद्वाज ने दुबारा इस्तेमाल किया है इस शानदार प्रेम गीत में. गुलज़ार के शब्दों के बारे में कुछ कहने की जरुरत ही नहीं है. इस में एक जगह आये ‘झुक के जब झुमका मैं चूम रहा था, देर तक गुलमोहर झूम रहा था’ सुनकर मुझे दुष्यंत कुमार और उनकी वो प्रसिद्द ग़ज़ल बरबस याद आई. बेहद उम्दा गीत.
कुल मिलाकर हैदर एक बेहतरीन संगीत अल्बम लगा मुझे. विशाल भारद्वाज की फिल्मों में संगीत पक्ष हमेशा ही सशक्त रहा करता है. हैदर भी इसमें अपवाद नहीं है. एक बेहद शानदार संगीत के निर्माण के लिए विशाल, गुलजार और टीम को दिल से बधाई. हैदर को सुनने की इच्छा हो तो वक्त निकालिएगा दोस्तों. ये हड़बड़ी में सुना जाने वाला संगीत कतई नहीं है. इसे थम कर सुनना होगा. हाँ, अगर ‘चार बोतल वोडका, काम मेरा रोज़ का' आपका फेवरेट गीत है तो इस अल्बम से दूर ही रहिये.
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