Friday, August 30, 2013

इश्क की दास्तान है प्यारे

जिगर मुरादाबादी साहब की एक गजल मुझे बेहद पसंद हैं... जगजीत सिंह जी की आवाज़ में इसे जब भी सुनती हूं खो जाती हूं...आज ये गजल जब सर्च की तो एक बेहद उम्दा चीज़ हाथ लगी... जिगर साहब की इस गजल के काफिये पर ही किसी और नामालूम शायर ने एक और बेहद उम्दा गजल लिखी हैं... साथ में ये माना भी हैं की ये गजल जिगर साहब की ग़जल से प्रेरित होकर लिखी गई हैं.. अफ़सोस की शायर का नाम नहीं मिला मुझे... दोनों गजलें शेयर कर रही हूं... ये आप पर हैं की आप किसे ज्यादा पसंद करते हैं...

इश्क की दास्तान है प्यारे
अपनी अपनी जुबान है प्यारे

हम ज़माने से इन्तेकाम तो ले
इक हसीं दरमियान है प्यारे

तू नहीं मैं हूं, मैं नहीं तू हैं
अब कुछ ऐसा गुमान है प्यारे

रख कदम फूंक फूंक कर नादां
ज़र्रे-ज़र्रे में जान है प्यारे

--------------- जिगर मुरादाबादी.

***************************************************
अब इसी ज़मीन पर किसी नामालूम शायर की एक बेहद दिलकश ग़ज़ल..........
***************************************************

इक नई दास्तान है प्यारे
गो पुरानी जुबान है प्यारे

आज भी ज़ात के ज़बीं पे मेरे
चोट का इक निशान है प्यारे

तूने मांगी सदायें जिससे है
वो तो इक बेजुबान है प्यारे

दर्द मजहब है मेरे शेरों के
ज़ख्म का खानदान है प्यारे

तू है काफिर इसे ना समझेगा
दिल मेरा इक अज़ान है प्यारे

उस परिंदे पे आंख क्या रखना
जिसकी उंची उड़ान है प्यारे

-------------- अज्ञात.

खुद्दारियों के ख़ून को अर्जां न कर सके

खुद्दारियों के ख़ून को अर्जां न कर सके
हम अपने जौहरों को नुमाया न कर सके

होकर ख़राबे-मय तेरे ग़म तो भुला दिये
लेकिन ग़मे -हयात का दरमां न कर सके

टूटा तिलिस्मे-अहदे -मोहब्बत कुछ इस तरह
फिर आरज़ू की शम्मअ फरोजां न कर सके

हर शै करीब आ के कशिश अपनी खो गई
वो भी इलाजे-शौके -गुरेजां न कर सके

किस दर्ज़ा दिलशिकन थे मोहब्बत के हादसे
हम ज़िन्दगी में फिर कोई अरमां न कर सके

मायूसियों ने छीन लिये दिल के वलवले
वो भी निशाते -रूह का सामाँ न कर सके

------------- साहिर लुधियानवी



अर्जां = सस्ता
ख़राबे-मय = शराब के हाथों ख़राब होकर
दरमां = इलाज
तिलिस्मे-अहदे -मोहब्बत = प्रेम काल का जादू
फरोजां=प्रकाशमान
इलाजे-शौके -गुरेजां = विमुख प्रेम का इलाज
दिलशिकन = दिल तोड़ने वाले
निशाते -रूह का = आत्मा की तृप्ति का

Thursday, August 29, 2013

ख़ुदा मिला हो जिन्हें, वो ख़ुदा की बात करें

सज़ा का हाल सुनाये, जज़ा की बात करें
ख़ुदा मिला हो जिन्हें, वो ख़ुदा की बात करें

उन्हें पता भी चले और वो ख़फ़ा भी न हो
इस एहतियात से क्या मुद्दआ की बात करें

हमारे अहद की तहज़ीब में क़बा ही नहीं
अगर क़बा हो, तो बन्द-ए-क़बा की बात करें

हर एक दौर का मज़हब नया ख़ुदा लाया
करें तो हम भी, मगर किस ख़ुदा की बात करें

वफ़ा-शियार कई हैं, कोई हंसी भी तो हो
चलो, फिर आज उसी बेवफ़ा की बात करें

-----------साहिर लुधियानवी

Wednesday, August 28, 2013

दुःख क्या होता है

तुमने पूछा के...
दुःख क्या होता हैं...?
तो सुनो,
ऐसा करना
कभी किसी को चाहना
और चाहते ही रहना
दिन भर उसको सोचते ही रहना
जागती आंखों से उसके सपने देखते ही रहना
अपने हाथों की लकीरों में
उसका नाम तराशते ही रहना
और जब कभी वो
इन रियाजतों का हिसाब मांगने को
सामने आये तो,
तुम अना का हाथ थाम लेना
अगर वो कुछ कहे तो
मुस्कुराकर अंजान बन जाना
और जब वो मायूस होकर
लौट जाये तो,
अपने अन्दर झांकना
और खुद से पूछना
तब तुम्हारा दिल तुम्हे बतायेगा कि,
दर्द किसे कहते हैं....?
दुःख क्या होता हैं....?


-- अज्ञात

Thursday, August 22, 2013

पूछते हो तो सुनो कैसे बसर होती है

पूछते हो तो सुनो कैसे बसर होती है
रात खैरात की सदके की सहर होती है

सांस भरने को तो जीना नहीं कहते या रब
न दिल दुखता है ना आस्तीन तर होती है

जैसे जागी हुयी आँखों में चुभे कांच के ख्वाब
रात इस तरह दीवानों की बसर होती है

गम ही दुश्मन है मेरा, गम ही को दिल ढूंढता है
एक लम्हे को जुदाई भी अगर होती है

एक मरकज़ की तलाश एक भटकती खुशबू
कभी मंजिल कभी तहमीदे सफ़र होती है

------- मीना कुमारी 'नाज़'

Wednesday, August 21, 2013

गिरने न दिया मुझको हर बार संभाला है

गिरने न दिया मुझको हर बार संभाला है
यादों का तेरी कितना अनमोल उजाला है

वो कैसे समझ पाए दुनिया की हकीक़त को,
सांचे में उसे अपने जब दुनिया ने ढाला है

ये दिन भी परेशां है ये रात परेशां है,
लोगों ने सवालों को इस तरह उछाला है

इंसानियत का मन्दिर अब तक न बना पाए,
वैसे तो हर इक जानिब मस्जिद है शिवाला है

सपनों में भी जीवन है फुटपाथ पे सोते हैं,
जीने का हुनर अपना सदियों से निराला है

सब एक खुदा के ही बन्दे हैं जहां भर में,
नज़रों में मेरी कोई अदना है न आला है

गंगा भी नहा आए तन धुल भी गया लेकिन,
मन पापियों का अब तक काले का ही काला है

-विनय मिश्र

Monday, August 19, 2013

वहां भी तो बसेरे हैं जहां गुम्बद नहीं होते

अंधेरे चंद लोगों का अगर मक़सद नहीं होते
यहां के लोग अपने आप में सरहद नहीं होते

न भूलो, तुमने ये उंचाइयां भी हमसे छीनी हैं
हमारा क़द नहीं लेते तो आदमक़द नहीं होते

फ़रेबों की कहानी है तुम्हारे मापदण्डों में
वरना हर जगह बौने कभी अंगद नहीं होते

तुम्हारी यह इमारत रोक पाएगी हमें कब तक
वहां भी तो बसेरे हैं जहां गुम्बद नहीं होते

चले हैं घर से तो फिर धूप से भी जूझना होगा
सफ़र में हर जगह सुन्दर घने बरगद नही होते

------------ अज्ञात.

Friday, August 16, 2013

उम्र के धूप चढ़ल, धूप सहाते नइखे

उम्र के धूप चढ़ल, धूप सहाते नइखे
हमरा हमराही के इ बात बुझाते नइखे

मंजिले इश्क में कइसन इ मुकाम आइल बा
हाय ! हमरा से “आई.लव.यू” कहाते नइखे

देह अइसन बा कि ई आँख फिसल जाताटे
रूप अइसन बा कि दरपन में समाते नइखे

जब से देखलें हई हम सोनपरी के जादू
मन बा खरगोश भइल जोश अड़ाते नइखे

कइसे सँपरेला अकेले उहां प तहरा से
आह! उफनत बा नदी, बान्ह बन्हाते नइखे

साथ में तोहरा जे देखलें रहीं सपना ओकर
याद आवत बा बहुत याद ऊ जाते नइखे

हमरा डर बा कहीं पागल ना हो जाए ‘भावुक’
दर्द उमड़त बा मगर आँख लोराते नइखे

-मनोज सिंह 'भावुक'

Wednesday, August 14, 2013

भारत-पाक बंटवारा

उनका जो काम हैं, वो अहले सियासत जाने...
मेरा पैगाम मुहब्बत हैं जहां तक पहुंचे...

--------------जिगर मुरादाबादी.

भारत-पाक बंटवारा..... पिछली सदी की सबसे भयानक घटना... धरती के इतिहास का शायद सबसे बड़ा विस्थापन.... जिसकी वजह से लाखों लोगों को अपना सब कुछ खोना पड़ा... अपना घर-बार, अपना गांव, अपने यार-दोस्त, समाजी रिश्ते एक झटके में तोड़कर किसी अनजान जगह कूच कर जाने का फरमान जिन्हें मिला होगा उन पर क्या बीती होगी ये तो वही जाने.. मेरी तो सोचकर ही रूह कांप जाती हैं....

इस बंटवारे का अगर सबसे बड़ा नुकसान कोई हुआ तो वो ये की एक ही नस्ल के, एक ही रंग के, एक ही सभ्यता के, एक ही सांझी विरासत के लोग एक दूसरे के दुश्मन कहलाये जाने लगे... बावजूद दिलों में मौजूद मुहब्बत के अवशेषों के... भाषाएं भी बंट गई... उर्दू पर पाकिस्तानी ( मुस्लिम ) होने का ठप्पा लग गया तो हिंदी भारत की पहचान बन गई... उस दिन पैदा हुई नफरत की चिंगारी आज इतनी बड़ी आग बन चुकी हैं की हमारी सारी तवज्जों सिर्फ और सिर्फ पडोसी मुल्क से रक्षा पर लगी हुई हैं.. उस मुल्क से जो कभी हमारे ही शरीर का हिस्सा हुआ करता था... आज पाकिस्तानी कहा जाना गाली जैसा हो गया... और ऐसे ही हालात पकिस्तान में भी होंगे... ना जाने ये जहर हमारी रगों में इतना गहरा कैसे और कब उतर गया की अब हमारे बातचीत के तरीके भी जहरीले हो गए... हुक्मरानों की, सियासतदानों की मतलबपरस्ती का दंश दोनों देशों की जनता पिछले 66 सालों से झेल रही हैं... और ना जाने कब तक झेलने के लिए अभिशप्त हैं...

आज और कल पड़ने वाले दो देशों के स्वतंत्रता दिवस पर हम और आप मिलकर कुछ पलों की श्रद्धांजलि उन लोगों को अर्पित करते हैं जिन्होंने 1947 की त्रासदी को जिया और जिसके ज़ख्म उनकी आने वाली कई पीढ़ियों के सीने पर मौजूद हैं...

इस त्रासदी की भयावहता जानने के लिए कृपया इस ब्लॉग पर नज़र डालिए... पर इसे तभी देखिएगा जब आपका कलेजा मजबूत हो.....

http://comic-guy.blogspot.in/2011/01/biggest-mistake.html

Monday, August 12, 2013

क्या मेरी ईद हो गई

साहिब-ए-अक्ल हैं आप, इक मसला तो हल कीजिये,
रुख-ए-यार नहीं देखा, क्या मेरी ईद हो गई...????

मैं इसी धूप में खुश हूं कोई साया न करे

हाल पूछा न करे हाथ मिलाया न करे
मैं इसी धूप में खुश हूं कोई साया न करे

मैं भी आखिर हूं इसी दश्त का रहने वाला
कैसे मजनूं से कहूं खाक उड़ाया न करे

आईना मेरे शबो रोज़ से वाकिफ़ ही नहीं
कौन हूं, क्या हूं, मुझे याद दिलाया न करे

ऐन मुमकिन है चली जाय समाअत मेरी
दिल से कहिये कि बहुत शोर मचाया न करे

मुझ से रस्तों का बिछडऩा नहीं देखा जाता
मुझसे मिलने वो किसी मोड़ पे आया न करे

------------ काशिफ हुसैन.