Friday, August 30, 2013

खुद्दारियों के ख़ून को अर्जां न कर सके

खुद्दारियों के ख़ून को अर्जां न कर सके
हम अपने जौहरों को नुमाया न कर सके

होकर ख़राबे-मय तेरे ग़म तो भुला दिये
लेकिन ग़मे -हयात का दरमां न कर सके

टूटा तिलिस्मे-अहदे -मोहब्बत कुछ इस तरह
फिर आरज़ू की शम्मअ फरोजां न कर सके

हर शै करीब आ के कशिश अपनी खो गई
वो भी इलाजे-शौके -गुरेजां न कर सके

किस दर्ज़ा दिलशिकन थे मोहब्बत के हादसे
हम ज़िन्दगी में फिर कोई अरमां न कर सके

मायूसियों ने छीन लिये दिल के वलवले
वो भी निशाते -रूह का सामाँ न कर सके

------------- साहिर लुधियानवी



अर्जां = सस्ता
ख़राबे-मय = शराब के हाथों ख़राब होकर
दरमां = इलाज
तिलिस्मे-अहदे -मोहब्बत = प्रेम काल का जादू
फरोजां=प्रकाशमान
इलाजे-शौके -गुरेजां = विमुख प्रेम का इलाज
दिलशिकन = दिल तोड़ने वाले
निशाते -रूह का = आत्मा की तृप्ति का

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