Wednesday, August 21, 2013

गिरने न दिया मुझको हर बार संभाला है

गिरने न दिया मुझको हर बार संभाला है
यादों का तेरी कितना अनमोल उजाला है

वो कैसे समझ पाए दुनिया की हकीक़त को,
सांचे में उसे अपने जब दुनिया ने ढाला है

ये दिन भी परेशां है ये रात परेशां है,
लोगों ने सवालों को इस तरह उछाला है

इंसानियत का मन्दिर अब तक न बना पाए,
वैसे तो हर इक जानिब मस्जिद है शिवाला है

सपनों में भी जीवन है फुटपाथ पे सोते हैं,
जीने का हुनर अपना सदियों से निराला है

सब एक खुदा के ही बन्दे हैं जहां भर में,
नज़रों में मेरी कोई अदना है न आला है

गंगा भी नहा आए तन धुल भी गया लेकिन,
मन पापियों का अब तक काले का ही काला है

-विनय मिश्र

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