Wednesday, March 26, 2014

रौशन उजाले

मेरा मुंह काला, तेरे हाथ काले हो गए..
लेकिन इसी कालिख से रौशन उजाले हो गए
जिनके लिए लड़ने का दिखावा करते फिरते हो,
कभी ये भी देख उनसे दूर उनके निवाले हो गए
झूठ के तिलिस्म में कशिश नुमायाँ थी इतनी,
खामोश सब के सब सच बोलने वाले हो गए
पढ़ा किये जो दुनिया की तारीख को हर्फ़-हर्फ़,
देखिये उन जहनों में कितने जाले हो गए
खूरेंजी को कहते है जन्नत की सीढ़ी है ये,
कहाँ गर्क वो इश्क सिखाते अल्लाह वाले हो गए
मजहब ने छोड़ा जबसे प्रीत की रीत का दामन,
मस्जिदें नापाक हुई, दूषित शिवाले हो गए
तारीकियों में दिया जलाना, है काम यही तेरा 'ज़ारा',
ना घबराना जो इस राह में कभी जान के लाले हो गए
----- ज़ारा.
26/03/2014.

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