सऊदी लेखक अब्दुल्लाह मुहम्मद अल दाउद का कहना है कि कामकाजी महिलाओं का शारीरिक उत्पीडन किया जाना चाहिए. ताकि वो घरों में रहे और उनके सतीत्व की, उनकी शुद्धता की रक्षा हो. ये बात इन साहब ने ट्विटर पर कही है जहाँ इनके 97000 फॉलोअर्स है.
इस्लाम को जितना बदनाम इन कठमुल्लों ने किया है उतना तो इस्लाम का दुश्मन भी नहीं कर पाया होगा. ऐसी वाहियात सोच रखने वालों के हाथ में मजहब की कमान होना बहुत ही खतरनाक है. इतनी जलील और जहालत भरी सोच रखने वाले इस्लाम का चेहरा बने हुए है ये इस्लाम का दुर्भाग्य है. वैसे, अय्याशों का तीर्थस्थल रही शेखों की नगरी से ऐसा बयान आना कोई हैरानी की बात नहीं है. इनके लिए औरतें घर में रहना इसलिए भी जरुरी है ताकि इनका हरम गुलजार रहे. मर्द के इस्तेमाल में आनेवाली एक बेजान शय से ज्यादा औरत का वजूद ही न हो जिनके लिए उन्हें पूरी दुनिया के मुसलमान अपना रहनुमा मानते है. लानत है. हजार बार लानत है.
अपनी अकल के तारे इस तरह तोड़ कर बाद में उम्मीद करते हैं इस्लाम को बराबरी प्रदान करने वाला मजहब माना जाए. क़यामत के दिन अगर सामना हुआ न दाउद साहब तो आपका सर होगा और मेरी जूती. फिर जन्नत मिले या जहन्नुम परवाह किसे है ?
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