Saturday, October 12, 2013

मेरी इन आंखों से अश्कों का समंदर निकला

दिल के ज़ज्बात जो भर आये तो बाहर निकला...
मेरी इन आंखों से अश्कों का समंदर निकला....

ख्वाहिश-ए-दीद में देखा किये हर चेहरे को,
एक चेहरा भी नहीं तेरे बराबर निकला...

जिसको इक उम्र खुदा जानकर पूजा हमने,
क्या बताएं तुझे ऐ दोस्त वो पत्थर निकला...

इस तरह तीर चलाया था किसी जालिम ने,
दिल में पैबस्त हुआ, रूह को छूकर निकला....

उम्र भर दस्त-ए-हिमायत जिसे समझे रक्खा,
पुश्त पर दीद जो डाली तो वो खंजर निकला...

गर्दिश-ए-वक्त तू कर अपनी निगाहें नीची,
काफिला फिर से कोई आज खुले सर निकला...

अपनी उल्फत को अमर करने की खातिर वो शख्स,
तेरे कूचे से गया ऐसे के मर कर निकला....

----------- अज्ञात.

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