मोमबत्तियां ख़त्म हो गई क्या बाज़ार से...? नैना साहनी और लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार के पीड़ितों के लिए तो एक भी ना जली...?
खैर, होता है... और भी ग़म है ज़माने में....
"क़ौम के ग़म में डिनर खाते हैं हुक्काम के साथ
रंज लीडर को बहुत है मगर आराम के साथ.."
खैर, होता है... और भी ग़म है ज़माने में....
"क़ौम के ग़म में डिनर खाते हैं हुक्काम के साथ
रंज लीडर को बहुत है मगर आराम के साथ.."
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