Saturday, October 5, 2013

मेरी हसरतों को सुखन सुना, मेरी ख्वाहिशों से ख़िताब कर.

न सन्नाटों में तपिश घुले, न नज़र को वक्फ-ए-अजाब कर...
जो सुनाई दे उसे चुप सिखा, जो दिखाई दे उसे ख्वाब कर...

अभी मुंतशिर न हो अजनबी, न विसाल रुत के करम जता,
जो तेरी तलाश में गुम हुए, कभी उन दिनों का हिसाब कर...

मेरे सब्र पर कोई अज्र क्या, मेरी दोपहर पे ये अब्र क्यूँ ?
मुझे ओढने दे अज़ीयतें, मेरी आदतें न ख़राब कर...

कहीं आबलों के भंवर बजे, कहीं धूप रूप बदन सजे,
कभी दिल को थल का मिज़ाज दे, कभी चश्म-ए-तर को चनाब कर...

ये हुजूम-ए शहर-ए-सितमगरां , न सुनेगा तेरी सदा कभी,
मेरी हसरतों को सुखन सुना, मेरी ख्वाहिशों से ख़िताब कर...

-------- मोहसिन नकवी.

1 comment:

  1. मतला ठीक कर ले...
    न समाअतो मे तपिश घुले

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