Sunday, October 6, 2013

रूह से छू ले इसे जिस्म का मन्तर न बना

अपनी औक़ात समझ खुद को पयम्बर न बना...
देख बच्चों की तरह रेत पे अक्षर न बना...

मुझसे मिलना है तो मिल आके फ़क़ीरों की तरह,
मुझसे मिलने के लिए ख़ुद को सिकन्दर न बना...

दस्तकें देता रहेगा कोई आतंक सदा,
वारदातों की गली में तू कोई घर न बना...

प्यार के गीत का ये शब्द बहुत सच्चा है,
रूह से छू ले इसे जिस्म का मन्तर न बना....


--अज्ञात

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