अपनी औक़ात समझ खुद को पयम्बर न बना...
देख बच्चों की तरह रेत पे अक्षर न बना...
मुझसे मिलना है तो मिल आके फ़क़ीरों की तरह,
मुझसे मिलने के लिए ख़ुद को सिकन्दर न बना...
दस्तकें देता रहेगा कोई आतंक सदा,
वारदातों की गली में तू कोई घर न बना...
प्यार के गीत का ये शब्द बहुत सच्चा है,
रूह से छू ले इसे जिस्म का मन्तर न बना....
--अज्ञात
देख बच्चों की तरह रेत पे अक्षर न बना...
मुझसे मिलना है तो मिल आके फ़क़ीरों की तरह,
मुझसे मिलने के लिए ख़ुद को सिकन्दर न बना...
दस्तकें देता रहेगा कोई आतंक सदा,
वारदातों की गली में तू कोई घर न बना...
प्यार के गीत का ये शब्द बहुत सच्चा है,
रूह से छू ले इसे जिस्म का मन्तर न बना....
--अज्ञात
No comments:
Post a Comment