एक महान ज्ञानी संत ने अपना प्रवचन कुछ इस तरह शुरू किया,
"इंसान शादी के बिना अधूरा है.............."
बस इतना सुनना था की लोगों में भगदड़ मच गई. हर कोई इस शाश्वत सत्य को लपककर गोली की रफ़्तार से रफूचक्कर हो गया. इतनी गहरी और सारगर्भित बात को अपने यारों, प्यारों और दुलारों को सुनाने की जल्दी में आगे का हिस्सा सुनना किसी ने भी जरुरी ना समझा.. सब सत्य का हिस्सा पाकर ऐसे बौराए हुए थे की जल्द से जल्द उसे सारी दुनिया में फैला देना चाहते थे.. एक भी ना रुका वहां... सिर्फ हम थे जो वहां रुके रहे... हमें इस सत्य में झोल दिखाई दे रहा था.. सोचा महात्मा जी से पूछ लेते है की क्या वो सच में ही इस बात को मानते है.. 'आर यू क्रेजी ..?' जैसा कोई इल्जामनुमा सवाल उनके सर पर मारने का इरादा था हमारा. पर उसकी नौबत ही नहीं आई... महात्मा जी कुछ देर तो हक्के बक्के होकर लोगों का बौराना देखते रहे. कई बार उनका मुंह खुला, बंद हुआ, फिर खुला, फिर बंद हुआ. ऐसा लगा की वो और भी बहुत कुछ कहना चाहते है पर कोई सुनके राजी नहीं था. सब लोग उस एक फिकरे में छुपे अर्ध-सत्य को झपटकर फरार हो गए. पूरा पंडाल खाली हो गया.
दुःख के मारे महात्मा जी की शक्ल विधवा के पति जैसी हो गई थी. फिर उनकी नज़रें हम पर पड़ी. उनकी आँखों में यूं ख़ुशी की चमक उभर आई जैसे हमने उन्हें प्याज मुफ्त में दिलाने का वादा कर दिया हो. उन्होंने हमारी तरफ नज़र भर कर देखा. ( आसाराम वाली नज़र नहीं ). अपने आप को व्यवस्थित किया. और फिर पहले जितने ही जोश से अपना वाक्य पूरा किया.
"इंसान शादी के बिना अधूरा है.... पर.... शादी के बाद मुकम्मल तौर से ख़त्म हो जाता है.."
फिर उन्होंने यूं हमारी तरफ देखा जैसे अपने कथन का प्रभाव हमारे चेहरे से पढना चाहते हो. हम तो पहले ही उनके स्टेटमेंट के दूसरे हिस्से से भयंकर रूप से सहमत हुए बैठे थे. हमने आँखों ही आँखों में उन्हें आश्वासन दिया की इस बार उन्होंने प्रकृति के महानतम रहस्यों में से एक पर से बड़ी कामयाबी से पर्दा उठाया है. और उनकी महानता का महिमामंडन करने वाले हज़ारो, लाखों शादी-पीड़ित लोग उन्हें इस भारतवर्ष में मिल ही जायेंगे.. बस उनके इस क्रांतिकारी विचार को आम जन तक पहुंचाना होगा .. अपने एकमात्र श्रोता की मूक सहमती को प्राप्त कर महात्मा जी धन्य टाइप हो गए और तुरंत समाधि में लीन हो गए..
तो मेरे कुंवारे मित्रों, आगे से अगर कोई आपको शादी के बारे में प्रवचन दे और शादी के फायदे गिनवाएं तो उसके सर पर महात्मा जी के ये अनमोल बोल परमाणु बम की तरह पटकना ना भूलियेगा. इंसान शादी के बिना अधूरा है पर शादी के बाद मुकम्मल तौर से ख़त्म हो जाता है. और मुकम्मल ख़त्म होने से बेहतर है आधा अधूरा ही सही बने रहना..
समझे के नाही...?
"इंसान शादी के बिना अधूरा है.............."
बस इतना सुनना था की लोगों में भगदड़ मच गई. हर कोई इस शाश्वत सत्य को लपककर गोली की रफ़्तार से रफूचक्कर हो गया. इतनी गहरी और सारगर्भित बात को अपने यारों, प्यारों और दुलारों को सुनाने की जल्दी में आगे का हिस्सा सुनना किसी ने भी जरुरी ना समझा.. सब सत्य का हिस्सा पाकर ऐसे बौराए हुए थे की जल्द से जल्द उसे सारी दुनिया में फैला देना चाहते थे.. एक भी ना रुका वहां... सिर्फ हम थे जो वहां रुके रहे... हमें इस सत्य में झोल दिखाई दे रहा था.. सोचा महात्मा जी से पूछ लेते है की क्या वो सच में ही इस बात को मानते है.. 'आर यू क्रेजी ..?' जैसा कोई इल्जामनुमा सवाल उनके सर पर मारने का इरादा था हमारा. पर उसकी नौबत ही नहीं आई... महात्मा जी कुछ देर तो हक्के बक्के होकर लोगों का बौराना देखते रहे. कई बार उनका मुंह खुला, बंद हुआ, फिर खुला, फिर बंद हुआ. ऐसा लगा की वो और भी बहुत कुछ कहना चाहते है पर कोई सुनके राजी नहीं था. सब लोग उस एक फिकरे में छुपे अर्ध-सत्य को झपटकर फरार हो गए. पूरा पंडाल खाली हो गया.
दुःख के मारे महात्मा जी की शक्ल विधवा के पति जैसी हो गई थी. फिर उनकी नज़रें हम पर पड़ी. उनकी आँखों में यूं ख़ुशी की चमक उभर आई जैसे हमने उन्हें प्याज मुफ्त में दिलाने का वादा कर दिया हो. उन्होंने हमारी तरफ नज़र भर कर देखा. ( आसाराम वाली नज़र नहीं ). अपने आप को व्यवस्थित किया. और फिर पहले जितने ही जोश से अपना वाक्य पूरा किया.
"इंसान शादी के बिना अधूरा है.... पर.... शादी के बाद मुकम्मल तौर से ख़त्म हो जाता है.."
फिर उन्होंने यूं हमारी तरफ देखा जैसे अपने कथन का प्रभाव हमारे चेहरे से पढना चाहते हो. हम तो पहले ही उनके स्टेटमेंट के दूसरे हिस्से से भयंकर रूप से सहमत हुए बैठे थे. हमने आँखों ही आँखों में उन्हें आश्वासन दिया की इस बार उन्होंने प्रकृति के महानतम रहस्यों में से एक पर से बड़ी कामयाबी से पर्दा उठाया है. और उनकी महानता का महिमामंडन करने वाले हज़ारो, लाखों शादी-पीड़ित लोग उन्हें इस भारतवर्ष में मिल ही जायेंगे.. बस उनके इस क्रांतिकारी विचार को आम जन तक पहुंचाना होगा .. अपने एकमात्र श्रोता की मूक सहमती को प्राप्त कर महात्मा जी धन्य टाइप हो गए और तुरंत समाधि में लीन हो गए..
तो मेरे कुंवारे मित्रों, आगे से अगर कोई आपको शादी के बारे में प्रवचन दे और शादी के फायदे गिनवाएं तो उसके सर पर महात्मा जी के ये अनमोल बोल परमाणु बम की तरह पटकना ना भूलियेगा. इंसान शादी के बिना अधूरा है पर शादी के बाद मुकम्मल तौर से ख़त्म हो जाता है. और मुकम्मल ख़त्म होने से बेहतर है आधा अधूरा ही सही बने रहना..
समझे के नाही...?
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