Saturday, September 6, 2014

जीता है कौन

जीता है सिर्फ तेरे लिए कौन, मर के देख
इक रोज़ मेरे यार ये भी तो कर के देख


मंजिल यही है आम के पेड़ों की छाँव में,
ऐ शहसवार घोड़े से नीचे उतर के देख


टूटे पड़े हैं कितने उजालों के तिलिस्मात,
साया-नुमा अंधेरों के अन्दर उतर के देख


फूलों की तंग-दामनी का तजकिरा ना कर,
खुशबू की तरह मौज-ए-सबा में बिखर के देख


तुझ पर खुलेंगे मौत की सरहद के रास्ते,
हिम्मत अगर है उसकी गली से गुजर के देख


दरिया की वुसअतों से उसे नापते नहीं,
तनहाई कितनी गहरी है इक जाम भर के देख

--------- आदिल मंसूरी.

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