गाज़ा से पूरी हमदर्दी है मुझे भी. आपकी ही तरह. लेकिन अगर आपको बीस सालों से दरबदर कश्मीरी पंडितों का दर्द दिखाई नहीं देता तो आप सबसे बड़े पाखंडी है. दर्द साझा होता है जनाब. हर गलत बात पर दर्द होता है. हर मजलूम की मौत पर गुस्सा आता है. लेकिन अगर आप मरने वाले का मजहब देखने के आदी हो, अपने दर्द को चुनिन्दा लोगों के लिए बचा रखते हो तो आप एक संवेदनशील इंसान कतई नहीं हो, आप एक फ्रॉड हो. और एक स्वस्थ संमाज के निर्माण में सब से बड़ा रोड़ा हो.
कश्मीरी पंडित हो या गाज़ा शरणार्थी... ईराक में मरते मासूम हो या दुनिया के महान लोकतंत्र भारत में रौंदी जा रही कन्याएं.... हर एक का दर्द अपने सीने में महसूस करना ही मानवता है. और अगर आप इसमें भी सिलेक्टिव हो तो आप मानव कहलाने के कतई हकदार नहीं हो. आप एक मुसलमान, एक हिन्दू, एक भारतीय, एक यहूदी, एक राष्ट्रवादी, एक मजहब-परस्त, एक आस्तिक, एक नास्तिक या इनके अलावा कुछ भी हो सकते हो लेकिन एक इंसान कभी नहीं हो सकते.
इन खांचों से निकल कर इंसान बनने की कोशिश की जानी चाहिए.. इससे भले ही कुछ ना हो, भले ही दुनिया ना बदले लेकिन शीशे में खुद से नज़र मिलाते वक्त कभी शर्म नहीं आएगी.
मेरे लिए मानवता से बढ़कर कुछ नहीं. ना ही राष्ट्रवाद और ना ही मजहब...
No comments:
Post a Comment