इक जरा सी रंजिश से,
शक की जर्द टहनी पर
फूल बदगुमानी के,
कुछ इस तरह से खिलते है...
ज़िन्दगी से प्यारे भी,
अजनबी से लगते है...
उम्र भर की चाहत को,
आसरा नहीं मिलता....
हाथ छूट जाते है,
साथ टूट जाते है,
और...
सिरा नहीं मिलता....
..................इक जरा सी रंजिश से....
शक की जर्द टहनी पर
फूल बदगुमानी के,
कुछ इस तरह से खिलते है...
ज़िन्दगी से प्यारे भी,
अजनबी से लगते है...
उम्र भर की चाहत को,
आसरा नहीं मिलता....
हाथ छूट जाते है,
साथ टूट जाते है,
और...
सिरा नहीं मिलता....
..................इक जरा सी रंजिश से....
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