दो
तरह की दुनिया से मेरा वास्ता पड़ता हैं... एक हैं फेसबूकी दुनिया.... जहां
अधिकतर लोग मुझे पसंद करते हैं, मेरा सम्मान करते हैं, मुझे कहते रहते है
की मुझमे प्रतिभा है, मेरा स्वभाव अच्छा है, मेरी पसंद अच्छी है वगैरह
वगैरह...
दूसरी दुनिया है हकीकी दुनिया... इसमें मेरी इमेज, अफ़सोस के साथ कहना पड़ रहा है की, कुछ ख़ास नहीं हैं... मेरे मोहल्ले पड़ोस की लडकियां समझती हैं की मैं किताबी कीड़ा हूं.. ( ये इल्जाम कबूल किया जा सकता है ).. आंटियां समझती हैं की उनकी गॉसिप का हिस्सा न बनकर मैं खुद को घमंडी साबित कर चुकी हूं.. और भाई-बहनों का मानना है की मैंने थोड़ी सी पढ़ाई क्या कर ली खुद को ज्यादा ही समझदार समझने लगी हूं...
और मैं हूं की इन दोनों दुनियाओं में पेंडुलम की तरह लटकी रहती हूँ... ये जाने बगैर की हकीकत के ज्यादा करीब कौन सी दुनिया हैं...
ज़िन्दगी और बता तेरा इरादा क्या हैं....???
दूसरी दुनिया है हकीकी दुनिया... इसमें मेरी इमेज, अफ़सोस के साथ कहना पड़ रहा है की, कुछ ख़ास नहीं हैं... मेरे मोहल्ले पड़ोस की लडकियां समझती हैं की मैं किताबी कीड़ा हूं.. ( ये इल्जाम कबूल किया जा सकता है ).. आंटियां समझती हैं की उनकी गॉसिप का हिस्सा न बनकर मैं खुद को घमंडी साबित कर चुकी हूं.. और भाई-बहनों का मानना है की मैंने थोड़ी सी पढ़ाई क्या कर ली खुद को ज्यादा ही समझदार समझने लगी हूं...
और मैं हूं की इन दोनों दुनियाओं में पेंडुलम की तरह लटकी रहती हूँ... ये जाने बगैर की हकीकत के ज्यादा करीब कौन सी दुनिया हैं...
ज़िन्दगी और बता तेरा इरादा क्या हैं....???
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