Wednesday, May 15, 2013

ये तय हुआ था

मुहब्बतों में हर एक लम्हा विसाल होगा ये तय हुआ था
बिछड़के भी एक दूसरे का ख़याल होगा ये तय हुआ था

जुदा जो हुए तो क्या हुआ फिर, के यही दस्तूरे ज़िन्दगी है
जुदाइयों में ना कुर्बतों का मलाल होगा ये तय हुआ था

ये क्या के साँसे उखड रही है, सफ़र के आगाज़ में ही यारा
कोई भी थक के ना रास्तों में निढाल होगा ये तय हुआ था

वही हुआ ना बदलते मौसम में तुमने खुद को ज़ख्म दिए
कोई भी रुत हो ना चाहतों का जवाल होगा ये तय हुआ था

चलो के अब कश्तियां जला दे, इन गुमनाम साहिलों पर
के अब यहाँ से ना वापसी का सवाल होगा ये तय हुआ था.

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