ज़िन्दगी के जितने दरवाज़े है मुझ पे बंद है
देखना, हद्द-ए-नज़र से आगे देखना भी जुर्म है
सोचना, अपने अकीदों और यकीनों से निकल कर सोचना भी जुर्म है
आसमान-दर-आसमान असरार की परतें हटाकर झांकना भी जुर्म है
क्यूँ भी कहना जुर्म है, कैसे भी कहना जुर्म है
सांस लेने की आज़ादी तो मयस्सर है मगर,
जिंदा रहने के लिए इंसान को कुछ और भी दरकार है
और इस कुछ और भी का तजकिरा भी जुर्म है..
ऐ ख़ुदावंदान-ए-ऐवान-ए-अक़ाएद
ऐ हुनर-मंदान-ए-आइन-ओ-सियासत
ज़िन्दगी के नाम पर ईक इनायत चाहिए.....
मुझको इन सारे ज़राईम की इजाज़त चाहिए.....
------------- अहमद नदीम कासमी.
देखना, हद्द-ए-नज़र से आगे देखना भी जुर्म है
सोचना, अपने अकीदों और यकीनों से निकल कर सोचना भी जुर्म है
आसमान-दर-आसमान असरार की परतें हटाकर झांकना भी जुर्म है
क्यूँ भी कहना जुर्म है, कैसे भी कहना जुर्म है
सांस लेने की आज़ादी तो मयस्सर है मगर,
जिंदा रहने के लिए इंसान को कुछ और भी दरकार है
और इस कुछ और भी का तजकिरा भी जुर्म है..
ऐ ख़ुदावंदान-ए-ऐवान-ए-अक़ाएद
ऐ हुनर-मंदान-ए-आइन-ओ-सियासत
ज़िन्दगी के नाम पर ईक इनायत चाहिए.....
मुझको इन सारे ज़राईम की इजाज़त चाहिए.....
------------- अहमद नदीम कासमी.
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