Monday, July 22, 2013

अयोध्या

अयोध्या ,
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हे राम ,
जीवन एक कटु यथार्थ है
और तुम एक महाकाव्य !

तुम्हारे बस की नहीं
उस अविवेक पर विजय
जिसके दस बीस नहीं
अब लाखों सिर – लाखों हाथ हैं
और विवेक भी अब
न जाने किसके साथ है ।

इससे बड़ा क्या हो सकता है
हमारा दुर्भाग्य
एक विवादित स्थल में सिमट कर
रह गया तुम्हारा साम्राज्य

अयोध्या इस समय तुम्हारी अयोध्या नहीं
योद्धाओं की लंका है ,
‘मानस’ तुम्हारा ‘चरित’ नहीं
चुनाव का डंका है !

हे राम , कहाँ यह समय
कहाँ तुम्हारा त्रेता युग ,
कहाँ तुम मर्यादा पुरुषोत्तम
और कहाँ यह नेता – युग !

सविनय निवेदन है प्रभु कि लौट जाओ
किसी पुराण – किसी धर्मग्रंथ में
सकुशल सपत्नीक….
अब के जंगल वो जंगल नहीं
जिनमें घूमा करते थे बाल्मीक !

-------- कुँवरनारायण.

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