आज सुबह अखबार हाथ में लेते ही मुखपृष्ठ से झांकते एक अंकल पर नजर पड़ी
जो भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने का अपना 'नेक' इरादा जाहिर कर रहे थे.
इसके लिए जिहाद छेड़ने का आवाहन कर रहे थे. मुझे उम्मीद है कि अपनी इस
शानदार योजना को कार्यान्वित करने के लिए उन्होंने तैयारियां भी शुरू कर दी
होगी. लेकिन एक समस्या भी तो है. भारत में तो अफगानिस्तान और पाकिस्तान से
भी ज्यादा मुसलमान है. जिहाद के लिए जरुरी दहशतगर्दी की चपेट में तो वो भी
आ जायेंगे. मुझे पूरा यकीन है कि जवाहिरी एंड टीम ने इसका तोड़
जरुर निकाल लिया होगा. ऐसे बम बनाए होंगे जो फटने के बाद सिर्फ हिन्दुओं
को उड़ा देते हो और 'मुसलमान भाइयों' को खरोंच भी ना आती हो. ऐसी गोलियां
इजाद की होंगी जो मुस्लिम शख्स की तरफ गलती से चली भी जाए तो भी उसे पहचान
कर, वहाँ से टर्न लेकर किसी काफिर की खोपड़ी में जा धंसे.
वैसे इन साहब ने ये नहीं बताया कि भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने के बाद इनका अगला स्टेप क्या होगा ? यहाँ सड़कें बनवायेंगे, समाज के आखिरी तबके तक रोटी पहुंचाने का जुगाड़ करेंगे या मलालाओं को गोली मारने में व्यस्त रहेंगे ?
वैसे जवाहिरी और अहमद शहजाद जैसों की बकवास सुनने के बाद ये इत्मीनान तो होता ही है कि मूर्खता पर हमारे भारतीय बड़बोलों का ही कॉपीराइट नहीं है. ऐसे नमूने तो दुनियाभर में बिखरे पड़े हैं.
खैर, मेरा हर उस भारतीय मुसलमान से अनुरोध है जो ऐसे लोगों को कौम का रहनुमा मानते हैं कि इस ग़लतफ़हमी से जितनी जल्दी उबर जायें वो अच्छा. ये खून के प्यासे भेडिये किसी के सगे नहीं. हमें अपना घर बचाना है पहले, कौम का मसला बहुत बाद का है. बल्कि है ही नहीं. इनकी हिमायत, किसी भी तरह की हिमायत, हमारे अपने लिए खतरनाक है. आगे बढ़कर इनका विरोध करना ही वक्त की जरुरत है. और फ़र्ज़ भी.
वैसे इस जवाहिरी को कोई ये याद दिलाये कि जब अमेरिका ने 9/11 के बाद अफगानिस्तान को बरबाद कर दिया था तब उसके पुनर्निर्माण में भारत ने उल्लेखनीय भूमिका निभाई थी. हम भारतीय निर्माण के पक्षधर हैं, जोड़ने में यकीन रखते हैं. और इतने समर्थ भी हैं कि आतताइयों से अपनी रक्षा कर सकें. समझाइये भाई कोई इसको..
वैसे इन साहब ने ये नहीं बताया कि भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने के बाद इनका अगला स्टेप क्या होगा ? यहाँ सड़कें बनवायेंगे, समाज के आखिरी तबके तक रोटी पहुंचाने का जुगाड़ करेंगे या मलालाओं को गोली मारने में व्यस्त रहेंगे ?
वैसे जवाहिरी और अहमद शहजाद जैसों की बकवास सुनने के बाद ये इत्मीनान तो होता ही है कि मूर्खता पर हमारे भारतीय बड़बोलों का ही कॉपीराइट नहीं है. ऐसे नमूने तो दुनियाभर में बिखरे पड़े हैं.
खैर, मेरा हर उस भारतीय मुसलमान से अनुरोध है जो ऐसे लोगों को कौम का रहनुमा मानते हैं कि इस ग़लतफ़हमी से जितनी जल्दी उबर जायें वो अच्छा. ये खून के प्यासे भेडिये किसी के सगे नहीं. हमें अपना घर बचाना है पहले, कौम का मसला बहुत बाद का है. बल्कि है ही नहीं. इनकी हिमायत, किसी भी तरह की हिमायत, हमारे अपने लिए खतरनाक है. आगे बढ़कर इनका विरोध करना ही वक्त की जरुरत है. और फ़र्ज़ भी.
वैसे इस जवाहिरी को कोई ये याद दिलाये कि जब अमेरिका ने 9/11 के बाद अफगानिस्तान को बरबाद कर दिया था तब उसके पुनर्निर्माण में भारत ने उल्लेखनीय भूमिका निभाई थी. हम भारतीय निर्माण के पक्षधर हैं, जोड़ने में यकीन रखते हैं. और इतने समर्थ भी हैं कि आतताइयों से अपनी रक्षा कर सकें. समझाइये भाई कोई इसको..
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