यूँ
तो इस कहानी पर इसके कलेवर जितना ही कुछ लिख सकती हूँ मैं लेकिन हिम्मत
नहीं होती. विभाजन के भयानक दौर की तल्ख़ हकीकत को बयां करती इस कहानी को
खुद पढ़िए आप लोग और बताइये कि क्या आप अपनी पलकों को नम होने से बचा सकें ?
कोई भी मुल्क हो, कोई भी मजहब हो, औरत की औकात उसके जिस्म तक ही महदूद कर
दी गई है. अपनी पहचान, अपना मुल्क, अपने भाईबंद तलाशती दिलशाद का ये बेमकसद
सफ़र और इस सफ़र का उतना ही निरर्थक अंजाम सभ्य कहलाने वाली मानव प्रजाति का
क्रूर चेहरा पूरी तरह बेनकाब करने में कामयाब है. इस कहानी की अंतिम
पक्तियां जब जब भी पढ़ती हूँ, कई पलों तक सन्नाटे से घिरी महसूस करती हूँ
अपने आप को..
http://hindisamay.com/…/Vibhajan-ki-kahaniyan/Ya%20Khuda.htm
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