मुखौटा
हमेशा ही नहीं रहते सभी चेहरे नकाबों में, सभी किरदार खुलते है कहानी ख़त्म होने पर..!!!
Monday, March 10, 2014
यकीन
होता इन्हें यकीन गर जन्नत में हूरों का
ये वाइज़-ओ-शेख कब के मर चुके होते....!!!
-------------- शायर नामालूम..
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment