Friday, August 16, 2013

उम्र के धूप चढ़ल, धूप सहाते नइखे

उम्र के धूप चढ़ल, धूप सहाते नइखे
हमरा हमराही के इ बात बुझाते नइखे

मंजिले इश्क में कइसन इ मुकाम आइल बा
हाय ! हमरा से “आई.लव.यू” कहाते नइखे

देह अइसन बा कि ई आँख फिसल जाताटे
रूप अइसन बा कि दरपन में समाते नइखे

जब से देखलें हई हम सोनपरी के जादू
मन बा खरगोश भइल जोश अड़ाते नइखे

कइसे सँपरेला अकेले उहां प तहरा से
आह! उफनत बा नदी, बान्ह बन्हाते नइखे

साथ में तोहरा जे देखलें रहीं सपना ओकर
याद आवत बा बहुत याद ऊ जाते नइखे

हमरा डर बा कहीं पागल ना हो जाए ‘भावुक’
दर्द उमड़त बा मगर आँख लोराते नइखे

-मनोज सिंह 'भावुक'

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