Thursday, October 16, 2014

आशियाना

ज़िन्दगी की ये ज़िद थी,
के ख्वाब बन के उतरेगी.....

नींद अपनी ज़िद पे थी,
के इस जनम ना आयेगी....

दो ज़िदों के साहिल पे,
मेरा आशियाना था.....!!!

---------- गागर में सागर बाय अज्ञात.

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