Tuesday, January 28, 2014

केजरीवाल

फांस बन के गले में अटक रहा है
राजनीति की धूल झटक रहा है

जमे हुओं के आसन हिला दिए,
तभी तो सब को खटक रहा है..

अराजक तत्वों को उन्हीं के खेल में 
वो जम के धो रहा है, पटक रहा है...

नहीं है मसीहा, लेकिन उम्मीद है उससे
वो कारवां संभालेगा जो भटक रहा है

संभल जाओ ऐ हाकिमों के अब तो
आम आदमी का माथा सटक रहा है



--------- ज़ारा.

No comments:

Post a Comment