फांस बन के गले में अटक रहा है
राजनीति की धूल झटक रहा है
जमे हुओं के आसन हिला दिए,
तभी तो सब को खटक रहा है..
अराजक तत्वों को उन्हीं के खेल में
वो जम के धो रहा है, पटक रहा है...
नहीं है मसीहा, लेकिन उम्मीद है उससे
वो कारवां संभालेगा जो भटक रहा है
संभल जाओ ऐ हाकिमों के अब तो
आम आदमी का माथा सटक रहा है
--------- ज़ारा.
राजनीति की धूल झटक रहा है
जमे हुओं के आसन हिला दिए,
तभी तो सब को खटक रहा है..
अराजक तत्वों को उन्हीं के खेल में
वो जम के धो रहा है, पटक रहा है...
नहीं है मसीहा, लेकिन उम्मीद है उससे
वो कारवां संभालेगा जो भटक रहा है
संभल जाओ ऐ हाकिमों के अब तो
आम आदमी का माथा सटक रहा है
--------- ज़ारा.
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