हम करे बात दलीलों से तो रद होती है
उसके होठों की ख़ामोशी भी सनद होती है
अपनी आवाज़ के पत्थर भी ना उस तक पहुंचे,
उसकी आँखों के इशारे में भी जद होती है
सांस लेते हुए इंसान भी है लाशों की तरह,
अब धड़कते हुए दिल की भी लहद होती है
जिस की गर्दन में है फंदा वहीं इंसा है बड़ा,
सूलियों से यहां पैमाइश-ए कद होती है
कुछ ना कहने से भी छीन जाता हैं ऐजाज़े सुखन,
ज़ुल्म सहने से भी ज़ालिम की मदद होती है
सर से गुजरा भी चला जाता है पानी की तरह,
जानता भी है कि बर्दाश्त की हद होती है
मैंने हर सांस में काटी है मुज़फ्फर सदियां,
मेरे इमरोज़ में तारीख अबद होती है
~~~~~~~ मुज़फ्फर वारसी.
उसके होठों की ख़ामोशी भी सनद होती है
अपनी आवाज़ के पत्थर भी ना उस तक पहुंचे,
उसकी आँखों के इशारे में भी जद होती है
सांस लेते हुए इंसान भी है लाशों की तरह,
अब धड़कते हुए दिल की भी लहद होती है
जिस की गर्दन में है फंदा वहीं इंसा है बड़ा,
सूलियों से यहां पैमाइश-ए कद होती है
कुछ ना कहने से भी छीन जाता हैं ऐजाज़े सुखन,
ज़ुल्म सहने से भी ज़ालिम की मदद होती है
सर से गुजरा भी चला जाता है पानी की तरह,
जानता भी है कि बर्दाश्त की हद होती है
मैंने हर सांस में काटी है मुज़फ्फर सदियां,
मेरे इमरोज़ में तारीख अबद होती है
~~~~~~~ मुज़फ्फर वारसी.
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