Sunday, November 17, 2013

थैंक यू सचिन

************सचिन को भारतरत्न***********

महान क्रिकेटर सचिन तेंडुलकर को भारतरत्न मिलने की घोषणा होने के बाद फेसबुकी दुनिया में खलबली मची हुई है. बहुत लोग है जो इस घोषणा से खुश है तो बहुत से ऐसे भी है जिनको कड़ा ऐतराज है. सबसे पहले यही स्पष्ट करती चलूं के मैं उनमे से हूँ जो खुश है. ये पुरस्कार एक ऐसे खिलाड़ी को दिया गया है जिसने अपने अप्रतिम खेल और शालीन आचरण से दुनियाभर में भारत का सम्मान बढ़ाया है. वो इस पुरस्कार के सच में हक़दार है.

सचिन को भारतरत्न मिलने पर कई तरह के ऐतराज उठाये जा रहे है. पहला ऐतराज ये की सचिन को भारतरत्न देकर कांग्रेस ने अपनी डूबती नैया बचाने की कोशिश की है. कबूल. बिल्कुल की है. पर इसमें सचिन का क्या दोष.? क्या इससे 24 सालों से अनवरत की हुई सचिन की मेहनत मिटटी हो गई.? अगर यही पुरस्कार भाजपाई शासन में मिलता तो ? तो ये की तब यही ऐतराज कांग्रेसी करते. इन लोगों का काम ही ये है. कांग्रेस की नीयत भले ही सचिन नाम के गरम तंदूर पर अपनी रोटियां सेंकनी हो, इससे सचिन का योगदान कम नहीं हो जाता.

दूसरा ऐतराज कुछ यूं होता है. सचिन सिर्फ एक खिलाड़ी है. खेलना उनका पेशा है. क्या उनको सर्वोच्च नागरिक सम्मान देना जायज है ? मुझे लगता है सरासर जायज है. हम भारतीयों की रोजमर्रा की संघर्षपूर्ण ज़िन्दगी में राहत के पल प्रदान करने वाले दो प्रमुख उत्सव है. सिनेमा और क्रिकेट. अनगिनत बार इन दोनों ने हमें गहरे अवसाद से निकाला है. अगर सिनेमा/संगीत के क्षेत्र में महानता प्राप्त कर चुकी लता दीदी को ये पुरस्कार मिल सकता है तो सचिन को क्यूँ नहीं ? आखिर लता जी ने भी तो विशुद्ध कमाई के लिए ही गीत गाये है. फिर भी भारतरत्न उन्हें देकर हमने उनके योगदान को सराहा है. इसी तरह सचिन ने भी भारत का नाम पूरी दुनिया में रौशन किया है. धर्म, जात, प्रान्त, राजनीति के नाम पर बंटे हुए इस देश को अगर कोई एक शख्स एक सूत्र में जोड़कर रखने में कामयाब हुआ है तो वो सचिन ही है. कई भारतीयों के किस्से हम सबने पढ़े हुए है की कैसे उन्हें विदेशों में "सचिन के देश का व्यक्ति' होने की वजह से सम्मान मिला.

20 साल पहले लोग खेल-कूद को फुरसत का काम और वक्त की बरबादी समझा करते थे. सचिन ने लोगों की सोच बदल दी. अब लोग अपने बच्चों को खेल में करियर बनाने के लिए प्रोत्साहित करने में जरा भीं नहीं झिझकते. सचिन ने ना सिर्फ क्रिकेट बल्कि समूचे खेल जगत का उपकार किया है. ऐसा कोई मार्केटिंग गुरु नहीं है जो अपने शिष्यों से ये न कहता हो की उसे अपनी फील्ड का 'सचिन तेंडुलकर' बनना है. सचिन सफलता की सर्वोच्च कसौटी के प्रतिक बन गए है. सिर्फ चालीस साल की उम्र में. इससे भी पहले. क्या ये कोई उपलब्धि नहीं है ?

सचिन ने हम भारतीयों को सिखाया की समर्पण क्या होता है. 'कर्म' का महिमामंडन करने वाले हमारे देश को सचिन ने सोदाहरण दिखाया की कर्म में आस्था किस प्रकार रखी जाती है. 24 सालों तक सचिन ने सिर्फ और सिर्फ अपने काम पर ध्यान दिया. जितने बेहतरीन वो खिलाड़ी है उससे बेहतरीन वो इंसान साबित हुए है. बेशुमार प्रसिद्धि प्राप्त करने के बाद भी उनका मैदान और मैदान के बाहर भी शालीन बने रहना अद्भुत है. ये वही सचिन है जिन्होंने राज ठाकरे जैसे संकुचित मनोवृत्ति के अवसरवादी नेता की घटिया राजनीति का ये कहकर जवाब दिया था, "मैं मुम्बईकर हूँ पर भारतीय पहले हूँ. मुंबई सबकी है." जब बड़े बड़े दिग्गज चुप थे तब सचिन का ये कथन बेहद सुकून भरा था.

सचिन को भारतीय जनता का बेशुमार प्यार प्राप्त हुआ है. कोई हैरानी नहीं है कि कल पूरा वानखेड़े स्टेडियम रो रहा रहा. पूरा देश रो रहा था. एक महान शख्सियत को ये एक अद्भुत, अकल्पनीय विदाई थी. जिस शख्स से 100 करोड़ लोग इतना प्यार करते हो उसकी अहमियत कैसे नकारी जा सकती है ? आपको क्रिकेट नापसंद हो सकता है कबूल पर क्या आपको अपने क्षेत्र में सर्वोच्च स्थान तक पहुंचे अपने किसी देशवासी पर गर्व नहीं महसूस होता ? आज पूरे विश्व में सचिन की चर्चा है. अमेरिका जैसा देश जहां क्रिकेट खेली भी नहीं जाती, सचिन की विदाई को लेकर उत्सुक है. टाइम मैगज़ीन ने सचिन के योगदान को भरपूर शब्दों में सराहा है. क्या इन सब बातों से हमारे भारत का गौरव नहीं बढ़ा ? और क्या पैमाना होता है श्रेष्ठ भारतीय होने का ?

एक ऐतराज न सिर्फ सचिन पर बल्कि क्रिकेट पर ही उठता आया है की क्रिकेट एक ऐसा खेल है जिसकी वजह से अन्य खेल पिछड़ गए है. ये एक मिथ्या आरोप है. (बहस आमंत्रित है). लोगों को क्रिकेट बन्दूक की नोक पर नहीं पसंद करवाया गया. जिसमे लोगों की रूचि है वो वही देखते है. क्रिकेट भारत का सर्वाधिक लोकप्रिय खेल है तो वो सिर्फ इसे पसंद करने वाले करोड़ों लोगों की वजह से. और जो चीज ज्यादा पसंद की जायेगी वही आगे रहेगी ना.. क्या क्रिकेटर्स को कम मेहनत करनी पड़ती है ? उनके समर्पण और लगन में किसी भी अन्य खेल के खिलाड़ी से कमी होती है ? क्रिकेट को पानी पी पीकर कोसने वालों से आप कुछ सवाल पूछ कर देख लीजिये. मसलन, क्या आप हॉकी के सारे मैच देखते हो ? भारतीय हॉकी टीम के सदस्यों के नाम क्या है ? क्या आपने हाल ही में संपन्न हुई बैडमिंटन लीग पर कोई ध्यान दिया ? क्या आपको पता है इस वक्त विश्वनाथन आनंद चेन्नई में कार्लसन के हाथों अपनी बादशाहत गंवाने के मुहाने पर है ? देख लीजियेगा 90 प्रतिशत लोग बगलें झांकते नजर आयेंगे. मेरे कई मित्र फेसबुक पर सालों से है. वो याद करके बताएं की हॉकी, टेनिस, बैडमिंटन, शतरंज या किसी भी और खेल से सम्बंधित कितने स्टेटस अपडेट उन्होंने देखे है ? पर जब एक क्रिकेट मैच होता है तो हर दूसरी वाल पर स्टेटस अपडेट आते रहते है. इतना ही लोकप्रिय है क्रिकेट भारत में. और इसे नकारा नहीं जा सकता. और वैसे भी तनावभरी ज़िन्दगी से जो चीज आपको कुछ पलों का डायवर्जन दे और 'स्ट्रेस बस्टर' का काम करे वो बुरी नहीं है. मुझे पता है मेरी लिस्ट में शामिल कई गुणी मित्रजन मुझसे घोर असहमत होंगे. पर मैं स्पष्ट करना चाहूंगी की मैं एक आम लड़की हूँ. जिसकी छोटी छोटी खुशियां है और छोटे छोटे ही गम है.

सचिन सही मायनों में भारतरत्न के हकदार है. कई जगह ये भी सुनाई आ रहा है की अब वो कांग्रेस का प्रचार करेंगे. तो करने दीजिये भई. वक्त आने पर उनसे भी पूछेंगे की किस बिना पर वो एक भ्रष्ट सरकार का समर्थन कर रहे है. हालांकि वो उनका निजी अधिकार होगा कि वो किसका समर्थन करे, ठीक उसी तरह जिस तरह लता जी को मोदी का समर्थन करने का हक़ है. फिर भी सवाल उनसे भी पूछे जायेंगे. पर आज, इस घडी तो उनकी महत्ता स्वीकार कीजिये. वो वक्त जब आएगा तब आएगा. तब तक तो एक बेहतरीन भारतीय की कल्पनातीत सफलता की कद्र कीजिये.

हां मुझे इस बात का जरुर जरुर मलाल है की हॉकी के जादूगर ध्यानचंद अब तक इस सम्मान से विमुख है. अब तक सरकारें इस बहाने की आड़ में छुप जाया करती थी की खेल जगत इस पुरस्कार के लिए पात्र नहीं है. पर अब जब पहल हो गई है तो उन्हें भी जल्द से जल्द ये उपाधि देकर इस उपाधि का सम्मान बढ़ाया जाए. उनको ये पुरस्कार ना मिलना एक दुर्भाग्यपूर्ण बात होगी.

दरअसल हमें इस वक्त सभी तर्क कुतर्क एक तरफ रखकर एक बेहतरीन शख्सियत की महत्ता को खुले दिल से स्वीकारना चाहिए. पर ऐसा होता दिखाई नहीं दे रहा. दरअसल हमारा देश आलोचकों का देश है. हमें हर चीज में कमी ढूँढने की आदत पड़ चुकी है. जब सारी दुनिया हमारे हीरोज को सम्मान दे रही होती है, हम उनमे कीड़े निकाल रहे होते है. ये खुद को अलग दिखाने की अंधी होड़ है जो घातक है. बेहतर होगा हम इस आदत को त्याग दे.

सचिन का वापस लौटकर पिच को सम्मान देना दर्शाता है कि उन्होंने अपने काम को ही अपना धर्म माना था. धार्मिक विद्वेष से जहरीली हो चुकी हमारे देश की हवाओं में 'कर्म ही धर्म है' का खामोश सन्देश पहुंचाने वाले अतुलनीय व्यक्ति को उसकी एक अदना सी प्रशंसक का सलाम.. उनका वो पिच को चूमना भारतीय संस्कृति का निचोड़ था. मेरे देश की सभ्यता को विश्व के कोने कोने तक पहुंचाने के लिए सचिन बधाई के और भारतरत्न के भी सरासर पात्र है.

आलोचक चाहे कुछ भी कहे, कहते रहे.... सचिन रमेश तेंडुलकर, आप करोड़ों भारतीयों के भारतरत्न थे, है और रहेंगे....

""थैंक यू सचिन.""


___________________________________________________________________

एडिट - हमारे सचिन को livevns.com वालों ने भी सर माथे बिठा लिया. मेरे द्वारा लिखे मामूली लेख को इतना सम्मान देने के लिए दिल से शुक्रिया...


http://www.livevns.com/?p=3343#more-3343

No comments:

Post a Comment