पूछते हो तो सुनो कैसे बसर होती है
रात खैरात की सदके की सहर होती है
सांस भरने को तो जीना नहीं कहते या रब
न दिल दुखता है ना आस्तीन तर होती है
जैसे जागी हुयी आँखों में चुभे कांच के ख्वाब
रात इस तरह दीवानों की बसर होती है
गम ही दुश्मन है मेरा, गम ही को दिल ढूंढता है
एक लम्हे को जुदाई भी अगर होती है
एक मरकज़ की तलाश एक भटकती खुशबू
कभी मंजिल कभी तहमीदे सफ़र होती है
------- मीना कुमारी 'नाज़'
रात खैरात की सदके की सहर होती है
सांस भरने को तो जीना नहीं कहते या रब
न दिल दुखता है ना आस्तीन तर होती है
जैसे जागी हुयी आँखों में चुभे कांच के ख्वाब
रात इस तरह दीवानों की बसर होती है
गम ही दुश्मन है मेरा, गम ही को दिल ढूंढता है
एक लम्हे को जुदाई भी अगर होती है
एक मरकज़ की तलाश एक भटकती खुशबू
कभी मंजिल कभी तहमीदे सफ़र होती है
------- मीना कुमारी 'नाज़'
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