Monday, April 1, 2013

मेरी हसरतों को शुमार कर, मेरी ख्वाहिशों का हिसाब दे

कही बेकिनार से रतजगे, कही ज़रनिगार से ख्वाब दे
तेरा क्या उसूल है ज़िन्दगी, मुझे कौन इसका जवाब दे

जो बिछा सकूँ तेरे वास्ते, जो सजा सकूँ तेरे रास्ते
मेरी दस्तरस में सितारे रख, मेरी मुट्ठियों में गुलाब दे

ये जो ख्वाहिशों का परिन्द है, इसे मौसमों से गर्ज नहीं
ये उड़ेगा अपनी ही मौज में, इसे आब दे की सराब दे

कभी यूं भी हो तेरे रूबरू, मैं नज़र मिला के ये कह सकूँ
मेरी हसरतों को शुमार कर, मेरी ख्वाहिशों का हिसाब दे

--------- अज्ञात.

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