22 जुलाई 1989 से 22 जुलाई 2014.
चौथाई सदी पूरी कर ली उम्र की. आज कल मनस्थिति ठीक ना होने के कारण फेसबुक से दूरी बना रखी है. लेकिन मेरे मेहरबान दोस्तों ने शुभकामनाओं से मेरा इनबॉक्स भर दिया. और मुझे लौट आना ही पड़ा. साढ़े चार सौ से ज्यादा मेसेजेस..!!!!
मैं अभिभूत हूँ... शुक्रगुजार हूँ... आपकी मुहब्बतों की कर्ज़दार हूँ...
मेरे अब तक के तमाम जन्मदिन पर जितने लोगों ने मुझे विश किया उनका टोटल भी लगाया जाए तो भी इस बार की संख्या से कम निकलेगा. इतनी मुहब्बत को लौटा पाना तो नामुमकिन टास्क है मेरे लिए. मैं आप सबका दिल से शुक्रिया अदा करती हूँ और वादा करती हूँ कि जिन वजुहात की वजह से आपका मुझपर इतना अपार स्नेह है उन्हें बरकरार रखने की जी-जान से कोशिश करुँगी. इतने ज्यादा मेसेजेस का पर्सनली जवाब देना बेहद मुश्किल है लेकिन मैं जरुर दूँगी. बस थोडा सा वक्त दीजियेगा.
मुल्क में जारी हैवानियत का नंगा-नाच (बदायूं, मोहनलाल गंज, भगाना ), दुनिया में जारी मासूमों का कत्ले-आम ( ईराक, गाजा, यूक्रेन ) और चारों ओर दम तोडती इंसानियत.. इन हालातों में कोई भी ख़ुशी मनाना किसी गुनाह से कम नहीं महसूस होता. ज़मीर शर्मसार होता है. लेकिन इससे आपकी शुभकामनाओं का मोल कम नहीं हो जाता. आप सब को दिल की गहराइयों से धन्यवाद.
खूंरेजी के इस दौर में खुश होने का पाखण्ड करते वक्त न जाने क्यूँ किसी नामालूम शायर की ये पंक्तियां ज़हन पर दस्तक देती रहती हैं...
"जब भी किसी ने उम्र के बढ़ने की दी दुआ,
मैं काँप काँप उठी के सज़ा और बढ़ गई...!!!"
मैं काँप काँप उठी के सज़ा और बढ़ गई...!!!"
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