मौजूदा असाधारण हालातों से उपजी एक साधारण लघुकथा.
~~~~~~~~~~~ संवेदनशीलता ~~~~~~~~~~~
आज किटी मर गई. अदनान को बेहद दुःख हुआ. बिटिया का रोना तो देखा नहीं जा रहा. मुश्किल से एक साल हुआ था किटी को इस घर में. गोल-मटोल, रुई के गोले सी किटी सारे घर की दुलारी थी. सारा की तो वो जान थी. सारा की अम्मी फातिमा ने शुरू शुरू में बिल्ली पालने को लेकर हंगामा मचाया था लेकिन बाद में वो भी किटी के फैन क्लब में शामिल हो गई थी. तीन लोगों के इस छोटे से परिवार में किटी की हैसियत चौथे सदस्य जैसी थी. यूँ अचानक उसका गुजर जाना सब के लिए बहुत बड़ा सदमा था. चिड़ियों के पीछे दौड़ लगाती हुई किटी अचानक सड़क पर पहुँच गई थी. और वहीँ एक कार की चपेट मर आकर मारी गई थी. उसके छिन्न-भिन्न शरीर के तरफ देखना काफी हौसले का काम था. लोगों ने कहा भी कि इसे नगर निगम के खत्ते पर फेंक आओ लेकिन सारा की ज़िद के आगे अदनान को झुकना ही पड़ा. सारा की ख्वाहिश थी कि किटी को बाकायदा दफनाया जाए. लॉन में उसने खुद अपने हाथों से गड्ढा खोदा. उसमे उसे दफनाया. मिट्टी डालने के बाद उस पर बड़ा सा पत्थर ला रखा ताकि आवारा कुत्ते कब्र को खोद ना सके. सारा ने लॉन से ही तोड़कर कब्र पर फूल भी चढ़ाए. इस सारे वक्त सारा ख़ामोशी से रोती रही थी. खुद उसका गला भी कई बार भर आया. एकाध बार आंसू भी छलक आयें. अब पता नहीं इसकी वजह किटी से मुहब्बत थी या वो बेटी के दुःख में रंजीदा था.
अपने आंसुओं से खुद अदनान को भी हैरत हुई. कुछ कुछ गर्व भी हुआ खुद पर. एक बिल्ली के मरने पर आँखों में पानी आ जाना उसे अपने संवेदनशील होने की निशानी लगी. क्रूरता से भरी इस दुनिया में रह कर भी अपने अन्दर की इंसानियत बरकरार रखने के लिए खुद की पीठ थपथपाने का मन हुआ. बहुत अच्छी फीलिंग आई खुद के लिए. आखिर इस दुनिया में दूसरों के दुःख में दुःखी होने वाले लोग बचे ही कितने है ?
रात को फातिमा ने खाना परोसा तो उससे ढंग से खाया न गया. एक चमकीली, तवज्जो मांगती उदासी उसके वजूद से लिपटी पड़ी थी. ऐसी ही मनस्थिति में उसने फेसबुक खोल लिया. शायद यहाँ मन बहल जाए ! न्यूज़ फीड में जो पहली ही पोस्ट थी उसमे कोई प्रिया शर्मा अपनी (?) तस्वीर लगाकर दोस्तों से उसकी खूबसूरती के बारे में राय पूछ रही थी. उसके ‘हाय दोस्तों, कैसी लग रही हूँ ?’ के जवाब में ‘cute like angel’ का कमेन्ट चिपकाकर वो आगे बढ़ गया. फिर चुटकुलों के ग्रुप में जाकर कुछ जोक्स पढ़े. मन प्रसन्न हो गया. यूँ ही घूमता घूमता एक ऐसी पोस्ट पर जा पहुंचा जहाँ ईराक में जारी नरसंहार पर अदनान के जातभाई ने कुछ लिखा था. बरसों से शियाओं द्वारा सुन्नियों पर जारी जुल्मो-सितम की बड़ी डिटेल्ड रिपोर्ट थी वो. पढ़कर उसका खून खौल गया. जिस्म थरथराने लगा. उसने कमेन्ट लिख मारा,
“शियाओं ने हमेशा हमारे मजलूम सुन्नी भाइयों का खून बहाया है. इस पाक जमीन पर से इनका वजूद हमेशा हमेशा के लिए मिट जाना चाहिए. इन्हें चुन चुन कर काट दो. या अल्लाह, मेरे सुन्नी भाइयों की मदद अता फरमा. उन्हें फतह दिला दें. शियाओं का वजूद मिटा दे.”
लिखकर उसे कुछ सुकून मिला. अपने भाइयों की हिमायत में चंद शब्द लिखकर यूँ लगा जैसे भाई-चारे की नई इबारत लिख आया हो. वहाँ से आगे बढ़ा तो गाज़ा में जारी हिंसा की तस्वीरें उसे विचलित कर गई. उसके ‘संवेदनशील’ मन को झटका सा लगा क्रूरता की ये नुमाइश देखकर. रगों में खून फिर से उबाल मारने लगा. अपने मुस्लिम भाइयों की इस दुर्दशा पर ग़म और गुस्सा एक साथ आने लगा. ऐसे में एक और तस्वीर पर नज़र अटक सी गई. उस तस्वीर में कुख्यात तानाशाह हिटलर ये कहता हुआ दिखाई दे रहा है कि,
‘मैं चाहता तो हर एक यहूदी को मार सकता था लेकिन मैंने कुछ को छोड़ दिया. ताकि दुनिया को ये समझ आता कि मैंने इन्हें क्यूँ मारा था.’ कितनी खरी बात ! एकदम दिल को छू गई. उसने फटाफट उस तस्वीर को शेयर किया और उसके साथ कैप्शन लगाया,
“महान हिटलर ने यहूदियों को मार कर जो एहसान इस दुनिया पर किया था उसका एहसास अब जाकर लोगों को हो रहा है. ये कौम है ही काट डालने लायक. हिटलर समझदार था. उसने इनकी फितरत ठीक पहचानी थी. समय से आगे की सोच रखने वाले इस महान योद्धा को मेरा सलाम.’
और इस तरह इंसानियत के पैरोकार अदनान ने मानव इतिहास की सबसे घृणास्पद घटना का समर्थन किया जिसमें इंसानियत को बुरी तरह रौंदा गया था. साथ ही हिटलर जैसे निहायत ही क्रूर और मानवजाति पर कलंक हत्यारे की हिमायत कर गर्व की अनुभूति प्राप्त की. हिटलर के रूप में एक नए आराध्य की प्राप्ति कर उसे आज की फेसबुक विजिट सार्थक लगने लगी थी. आज एक बार फिर उसने अपने अन्दर मौजूद इंसानियत के दर्शन किये थे. हजारों मील दूर मर रहे अपने भाइयों के लिए वो दुःखी हुआ था. उनका दर्द उसने अपने सीने में महसूस किया था. इससे बड़ी इंसानियत की और क्या मिसाल होगी ? उसे बेहद सुकून मिला. खुद पर फक्र भी हुआ. अब वो चैन से सो सकता था. उसे नींद आने भी लगी थी. और फिर इंसानियत की भावना से लबरेज़ अपने दिल को संभाले हुए वो सोने चला गया.
कहानी तो ख़त्म हो गई लेकिन उस ‘संवेदनशीलता’ का पता न लगा जो एक बेजुबान जानवर के मरने पर अदनान के पूरे वजूद से फूटी पड़ रही थी.
शायद..... शायद उसे वो किटी के साथ ही दफना आया था.