भक्तजनों के साथ सबसे बुरी बात ये हुई कि उनकी सरकार बन गई. एकदम से ज़िन्दगी में एक शून्य सा भर गया भाई लोगन के. पहले कैसे तलवारें भांजे ग़दर मचाये रहते थे. सहवाग की तरह फ्रंट फूट पर खेलते थे. भले ही तकनीक सही न हो. ये मुई सरकार क्या बन गई राहुल द्रविड़ की तरह डिफेंसिव मोड़ में जाना पड़ा. यूँ लग रहा है जैसे किसी जांबाज़ लड़ाके का ट्रान्सफर युद्ध भूमि से सीधे कस्टमर केयर डिपार्टमेंट में कर दिया गया हो. जिन बातों पर सुबह शाम बवाल मचाये रहते थे, उन्हीं को डिफेंड करते रहने जैसी कोई सजा नहीं. ऊपर से दिन रात कांग्रेस को, केजरीवाल को कोसते रहने का जो स्वर्गिक आनंद मिला करता था उसकी सप्लाई एकदम से बंद हो गई. कोसाई का वो अद्भुत आनंद ज़िन्दगी से गायब सा हो गया.
क्या दिन थे वो जब सुबह सुबह नहा-धोकर, एक ग्लास राष्ट्रवादी काढ़ा पीकर, भक्त मण्डली अस्त्र-शस्त्र संभाले कांग्रसियों की, आपियों की अम्मी-अप्पी करने बैठ जाया करती थी. एक से बढ़कर एक शानदार लिंक 'फेंक फेंक' कर मारे जाते थे. तर्क, भाषाई सभ्यता, सामने वाले की अभिव्यक्ति की आज़ादी का सम्मान आदि वाहियात बातों पर ध्यान देने की कतई जरुरत नहीं हुआ करती थी. कांग्रेसी टट्टू, विदेशी दलाल, देशद्रोही, पाकिस्तानी एजेंट जैसी अहम और महत्वपूर्ण उपाधियों का वितरण खुले मन से और थोक के भाव में किया जाता था. देर रात तक सुचारू रूप से चलता था सिलसिला. ये सरकार क्या बनी भक्त-जन फ्रस्ट्रेट होने की हद तक नाकारा हो गए. क्या करें कुछ सूझता ही नहीं. ब्लड स्ट्रीम में रच बस चुका कोसाई का वायरस बहुत तंग करता है.
कहाँ तो यार लोग जोश में थे कि लाहौर-कराची में भांगड़ा डालेंगे और कहाँ उन्हें शरीफ अंकल को बिरयानी खिलानी पड़ी. फटी फटी आँखों से शाल-साडी का आदान प्रदान देखना पड़ा. ये जुल्म नहीं तो और क्या है कि काले-धन की वापसी का नारा लगाकर बाबा रामदेव गायब हो जाए और फेसबुक की बेरहम दुनिया में भक्तजन सफाइयां देते फिरें. धत्त...! इससे अच्छा समय तो वही था जब दिन संस्कृति-रक्षा के नशे में डूबें और रातें राष्ट्रवादी हुआ करती थी. इस विसाल-ए-यार से ज्यादा मज़ा तो उस इंतज़ार में ही था. नो डाउट..!
अमां यार, कोई रिवर्स गियर लगाओ... भक्त जनों का गोल्डन पीरियड लौटा लाओ.. वरना श्राप लगेगा समस्त फेसबुक बिरादरी को....
( स्पेशल नोट : ये पोस्ट खालिस भक्त-जनों को समर्पित है. भाजपा-समर्थक दिल पे न लें. हाँ, भक्त-मंडली जिगर, फेफड़ा, गुर्दा जहाँ चाहे ले सकती है. हम समझेंगे कि उधार चुक गया. )
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