सुना है चुनावी मौसम में शराब की नदियां बहा करती है. छोटे मोटे पंचायती चुनाव भी मदिरा के आचमन के बिना नहीं लड़े जाते. फिर आजकल तो हमारे देश में चुनावों का वर्ल्ड कप चल रहा है. जाहिर है इस वक्त हमारे मुल्क के हर बड़े-छोटे शहर के हर गली-कूचे में अंगूर की बेटी का वितरण और ग्रहण पूरे भक्तिभाव से किया जा रहा होगा. हर नुक्कड़ पर अद्धे, पव्वे, खम्बे की बहार होगी. मैंने ये भी सुना है कि शराब दर्द का, दुःख का रामबाण इलाज है. ( कमबख्त हमें तो इलाज करवाना भी नहीं आता ! खैर...). सुनते आये हैं कि मय के प्याले में गोते लगाकर इंसान अपनी मुश्किलातों को कुछ समय के लिए भूल सा जाता है. यहाँ तक कि शराब के नशे में इंसान को अपनी बीवी तक खूबसूरत लगने की हैरतअंगेज़ घटनाएं घटित हुई है इसी धरतीपर. इस जालिम चीज़ की तारीफ़ में शायरों ने दीवान के दीवान लिख मारे हैं. हमने सोचा कि क्यूँ न हमें ज्ञात कुछ ऐसे ही शेरों का एक छोटा सा संकलन पेश किया जाए ! नॉन-ड्रिंकर लोग शायरी का मजा लें, सोशल-ड्रिंकर महफ़िलों में सुनाने के लिए इन्हें नोट कर लें और बेवडा समाज के अन्य सीनियर मोस्ट मेम्बर अगर होश में हो तो दिल खोल कर दाद दें.
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ताकत-ओ-हुस्न-ओ-ज़र भी नशे में है,
फिर मय के नशे में क्या खराबी है
बादाखोरी से मुझे रोकने वालों,
आदमी फितरतन शराबी है...
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कतरे कतरे का है नसीब जुदा,
कोई गौहर कोई शराब हुआ.....
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रहे न रिन्द ये वाइज के बस की बात नही
तमाम शहर है दो चार दस की बात नही
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ताजगी मिज़ाज में और रंगत जैसे पिघला हुआ सोना,
यहाँ तारीफ तेरी नहीं है मेरे साकी, यह जिक्र शराब का है
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जिसे रिंद कि जुबां में शराब कहते हें ,
वो रौशनी सी पिलाओ बड़ा अँधेरा है..
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कौन है जिसने मय नही चक्खी
कौन झूठी कसम उठाता है
मयकदे से जो बच निकलता है
तेरी आँखोँ मेँ डूब जाता है...
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ये इंतजार गलत है के शाम हो जाए
जो हो सके तो अभी दौरे जाम हो जाए
मुझ जैसे रिंद को भी तूने हश्र में या रब
बुला लिया है तो कुछ इंतजाम हो जाए
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एक सदी तक न वंहा पहुंचेगी दुनिया सारी
एक ही घूंट में दीवाने जंहा तक पहुंचे
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ज़ाहिद शराब पीने दे मस्जिद मे बैठकर
या वो जगह बता दे जहाँ पर खुदा न हो.
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गम इस कदर मिला कि घबरा के पी आए ,
खुशी थोड़ी सी मिली तो मिला के पी आए ,
यूं तो न थी जन्म से पीने की आदत ,
शराब को तन्हा देखा तो तरस खा के पी आए
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ज़ाहिद शराब पीने से काफिर हुआ मैं क्यों
क्या डेढ़ चिल्लु पानी में ईमान बह गया ?
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मस्जिद में बुलाते हैं हमें ज़ाहिदे-नाफहम
होता कुछ अगर होश तो मयख़ाने न जाते !
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दिल खुलता हैं वहां सोहबते रिन्दाना जहाँ हो
में खुश हूँ उसी शहर में मयखाना जहाँ हो
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फरिश्तो कि जरुरत क्या है, ये जन्नत नहीं वाईज,
इसे मयखाना कहते हैं यहाँ इंसान मिलते हैं
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शाम को जाम पिया, सुबह को तौबा कर ली,
रिन्द के रिन्द रहे, हाथ से जन्नत न गई..
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अंगूर में धरी थी पानी की चार बूंदे,
जब से वो खिंच गई है, तलवार हो गई है..
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साकी तू मेरे जाम पे कुछ पढ के फूंक दे
पीता भी जाऊं और भरा का भरा रहे
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रंगे शराब से मेरी नियत बदल गई
वाईज की बात रह गई साकी की चल गई
तैयार थे नमाज पे हम सुन के जिक्रे-हूर,
जलवा बुतों का देख के नियत बदल गई
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गालिब छूटी शराब, पर अब भी कभी कभी,
पीता हूँ रोज़-ए-अब्र-ओ-शब-ए-माहताब में
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अच्छी पी ली, खराब पी ली,
जैसी मिली शराब पी ली
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और अंत में जगजीत सिंह जी की गाई एक शानदार ग़ज़ल...
ठुकराओ अब के प्यार करो मैं नशे मैं हूँ
जो चाहो मेरे यार करो मैं नशे मैं हूँ
अब भी दिला रहा हूँ यकीने वफ़ा मगर,
मेरा न ऐतबार करो मैं नशे में हूँ
गिरने दो तुम मुझे मेरा सागर संभाल लो,
इतना तो मेरे यार करो मैं नशे में हूँ
मुझको क़दम-क़दम पे बहकने दो वाइजों,
तुम अपना कारोबार करो मैं नशे में हूँ
फिर बेखुदी में हद से गुज़रने लगा हूँ,
इतना न मुझसे प्यार करो मैं नशे में हूँ
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डिसक्लेमर :- शराब पीना सेहत के लिए हानिकारक है. इस पोस्ट का मकसद मनोरंजन मात्र है, शराब का महिमामंडन करना कतई नहीं है. दोस्तों से अनुरोध है कि वो उन्हें ज्ञात शेरों को नीचे कमेंट्स में लिखकर अखिल भारतीय बेवडा समाज को अनुग्रहित करे. चियर्स...!!!
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 20 अक्टूबर 2018 को लिंक की जाएगी ....http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteउम्दा ।
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