Wednesday, March 19, 2014

मौसिकी की जन्नत

'सुर कि बारादरी' से एक और टुकड़ा चाँद का....
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उस्ताद बिस्मिल्ला खां साहब एक बार बातचीत के दौरान कहने लगे - "यह जो आपके यहाँ ( हिन्दुओं में ) हज़ारों देवी-देवता हैं, हमारे मजहब में ( मुसलमानों में ) ढेरों पीर-पैगम्बर हैं - ये सब कौन लोग हैं ? जानते नहीं न ? हम बताते हैं भईया ! खुदा को तो नहीं देखा है, पर हां, गांधी जी को जरुर देखा, मदन मोहन मालवीय, नरेन्द्र देव और पंडित ओंकारनाथ ठाकुर को देखा है. उस्ताद फ़य्याज़ खां को बहुत नजदीक से देखा और सुना है. अरे ये लोग ही तो हमारे समय के पैगम्बर, देवता लोग है."
आगे कहने लगे - "अब सरस्वती को कौन अपनी आँखों से देख पाया होगा ? मगर बड़ी मोतीबाई, सिद्धेश्वरी, अंजनीबाई मालपेकर और लता मंगेशकर को देखा है. मैं दावे से कह सकता हूँ, अगर सरस्वती कभी होंगी, तो इन्हीं लोगों की तरह होंगी और बरखुरदार इतनी ही सुरीली होंगी. न तो ये औरतें सरस्वती से कम सुरीली होंगी और न ही सरस्वती इन गायिकाओं-फनकारों से ज्यादा सुर वाली. मगर आज कौन है, जो यह सब कहे. हम कहे दे रहे हैं क्योंकि जानते हैं कि मौसिकी की जन्नत से अलग कोई जन्नत नहीं हैं इस जहान में."

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