Wednesday, December 11, 2013

रौशन मिजाज लोगों का, क्या अजब मुकद्दर है

मेरी एक बहुत ही पसंदीदा नज्म उन लोगों को समर्पित जो बिना कोई शोर शराबा किये अपने कर्त्तव्य का निर्वाहन किये जाते हैं. जो बिना किसी स्वार्थ के लोगों में खुशियां बांटते रहते है और बदले में कुछ नहीं मांगते. उनके जज्बे को सलाम...!!!

रौशन मिजाज लोगों का,
क्या अजब मुकद्दर है..
जिंदगी के रास्ते में आने वाले काँटों को,
राह से हटाने में...
एक एक तिनके से,
आशियां बनाने में..
खुशबूएं पकड़ने में,
गुलिस्तां सजाने में,
उमर काट देते हैं...
और अपने हिस्से के फूल बांट देते हैं...
कैसी कैसी ख्वाहिश को,
क़त्ल करते जाते है..
दरगुजर के गुलशन में,
अब्र बनके रहते है..
सब्र के समंदर में,
कश्तियां चलाते है..

ये नहीं के उनको इस,
रोज-ओ-शब की कोशिश का,
कुछ सिला नहीं मिलता...
मरने वाली आसों का,
खून बहा नहीं मिलता...
ज़िन्दगी के दामन में,
जिस कदर भी खुशियां हैं,
सब ही हाथ आती है..
सब ही मिल भी जाती है..
वक्त पर नहीं मिलती
वक्त पर नहीं आती..
यानी उनको मेहनत का,
अज्र मिल तो जाता है..
लेकिन इस तरह जैसे,
कर्ज की रकम कोई
किश्त किश्त हो जाये..
अस्ल जो इबारत हो,
पस-ए-नविश्त हो जाये...
फस्ल-ए-गुल के आखिर में,
फूल उनके खिलते है...
उनके आंगन में सूरज,
देर से निकलते है...

उनके आंगन में सूरज देर से निकलते है....!!!

----------------- अफ़सोस के साथ ये भी अज्ञात.

2 comments:

  1. बहुत खूब नज़्म बाँटी हैं आपने। जरूरत है कि हमारा समाज ऐसे लोगों को वक्त से पहचाने। उनकी कोशिशों को सराहे उनका हौसला बढ़ाए ताकि उनके आँगन में सूरज समय से खिले।
    बहरहाल एक मशविरा ये कि जब भी आप कोई नज़्म बाँटें उसमें आए कठिन शब्दों के माएने भी नीचे लिख दें ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग उसके मर्म तक पहुँचें।

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