Tuesday, August 5, 2014

कोई तो बात है

कोई तो बात है बाकी गरीब-खानों में,
वगरना जिल्ले-इलाही और इन मकानों में...
मुहाजिरों को पता है अज़ाब-ए-दरबदरी,
हयात काटनी पड़ती है शामियानों में...
ये जा के कौन बतायें शरीफजादों को,
खतायें पलती हैं अब तक यतीमखानों में...
हमारे खून से बनती है सैंकड़ों चीज़ें,
हमारे बच्चे मुलाजिम हैं कारखानों में....
चलो ये रात तवायफ के घर गुज़ार आयें,
है छान-बिन बहुत मजहबी घरानों में....
------ हबीब सोज़.

मूर्खता का प्रदर्शन

अब्राहम लिंकन ने बोला था,
"Better to remain silent and be thought a fool than to speak out and remove all doubt."
राष्ट्रभाषा में जिसका मतलब हुआ के,
"चुप रह कर मूर्ख समझ लिया जाना बेहतर है, बजाय इस के कि मुंह खोल कर मूर्खता साबित की जाए."
आखिर समझने में और साबित होने में कुछ तो फर्क होगा ना...
स्पेशल नोट :- इस स्टेटस का कनेक्शन पूर्व प्रधानमंत्री और मौजूदा पीएम साहब से जोड़ने की मनाही तो नहीं है, लेकिन इसे अपने रिस्क पर करे. भक्तजनों का हमला होने पर पोस्ट करने वाली की कोई ज़िम्मेदारी नहीं होगी. धन्यवाद.

Monday, August 4, 2014

कन्फ्यूज़ कर दित्ता..

एक शायर ने कहा,
"इक दूजे के बिन न रहेंगे,
साथ जियेंगे, साथ मरेंगे.."

एक कथाकार ने अपनी कहानी में लिख दिया,
"मैं तुम से पहले इज दुनिया से विदा हो जाना चाहता हूँ, ताकि तुम्हारे बगैर एक पल भी मुझे इस दुनिया में ना रहना पड़े."

एक अफसाना-निगार अपने अफ़साने में बोले,
"मेरी शदीद ख्वाहिश है कि मेरी मौत तुम्हारे बाद हो. ताकि मैं इस इत्मीनान से मर सकूँ कि अब तुम्हें मेरी ज़रूरत नहीं रही. तुम दुनिया में मेरे बिना अकेली हो ये सोच सोच कर मेरी रूह कब्र में भी बेचैन रहेगी."

मॉरल ऑफ़ दी इश्टोरी इज,
ये शायर, कथाकार, रूमानी अफसाना निगार इनकी बातों में नहीं आने का.. ये भयंकर रूप से कन्फयूजिंग बातें करते हैं. इस पल में जीने का भाई लोग. मरने-मराने की बातों पर किस का बस चला है. लेकिन जीना अपने हाथ में है. शायरी, कहानी, अफसाना पढने का लेकिन करने का अपने मन की. खुल के जीने का और अपने साथी की ज़िन्दगी बेहतर बनाने की कोशिश करने का. फ़ालतू की नारेबाजी नेता लोगों के लिए छोड़ दो..

( ज्ञान के इस डोज के साथ मैं ज़ारा खान आपसे विदा लेती हूँ. गुड नाईट. कल मिलेंगे. वैसे किसी को बताना मत मैं आज रात महकता आँचल पढ़ रही हूँ. )

Sunday, August 3, 2014

मित्र अवनीश कुमार के लिए

यूँ तो दोस्ती के लिए महज़ एक दिन मुक़र्रर कर देना कोई ख़ास समझदारी का काम तो है नहीं. लेकिन जब चलन चल ही पड़ा है तो इस दिन को मैं किसी ख़ास दोस्त की शुक्रगुजार होने का मौका जान कर कबूल कर रही हूँ.
अक्टूबर / नवम्बर 2012 की बात है. किताबों से सम्बंधित एक ग्रुप ज्वाइन किया था. उसमे किसी पोस्ट पर इन से परिचय हुआ. फिर इनबॉक्स में बातें होने लगी. वो मेरा फेसबुक पर शुरूआती वक्त था सो बेतहाशा झिझक थी. मेरे ही हमउम्र इस मित्र ने मेरी झिझक को बेहद शिष्टता से दूर किया. मुझे फेसबुक की कई बुनियादी बातें सिखाई. जैसे कमेंट में नाम टैग करना, चैट ऑफ करना, हिंदी में टाइपिंग करने वाले टूल का लिंक देना, उसे डाउनलोड करने का तरीका सिखाना, और भी बहुत कुछ. लेकिन जो सब से बड़ा एहसान उन का मुझ पर है वो ये कि उन्होंने मुझे लिखने के लिए प्रेरित किया. प्रेरित क्या किया एक तरह से बांह मरोड़ कर मजबूर किया. मैंने शुरू शुरू में लिखा आस्था वाला नोट हो या किताबों वाली पोस्ट, सब उन्हीं की देख रेख में हुआ. वो मेरे प्रूफ रीडर भी थे और पहले पाठक भी. लिखना तो शायद मुझे आता था लेकिन इस काम में जो आत्मविश्वास की दरकार होती है वो बिल्कुल नदारद था. उन्होंने उस आत्मविश्वास को मेरे अन्दर प्रज्वलित किया. आज जब भी कोई अनजान व्यक्ति मेरे इनबॉक्स में आ कर कहता है कि 'आप बहुत अच्छा लिखती हो' तो उन की बरबस याद आ जाती है. और दिल से उन के लिए दुआ निकलती है.
उन ख़ास मित्र का नाम है अवनीश कुमार जी. आज कल इन का फेसबुक पर आना बहुत कम हो गया है.
मैं आज के दिन अपने दिल की तमामतर गहराइयों के साथ आपका शुक्रिया अदा करना चाहती हूँ अवनीश जी. मैंने तो आपको सिवाय सर-दर्द के कुछ नहीं दिया लेकिन आपने मुझे वो अता किया है जिस के लिए मैं चाहकर भी आपके एहसान से मुक्त नहीं हो सकती. ये जो मेरा लम्बा-चौड़ा फेसबुक परिवार है वो सिर्फ और सिर्फ आपकी बदौलत है.
आप का, आपकी अनगिनत नवाजिशों का दिल से शुक्रिया. आप खुश रहें, शाद रहें, आबाद रहें यही दुआ है.

Friday, August 1, 2014

दिल्ली में यूपी वाले बाहरी

ये यूपी से उत्तराखंड किसने अलग करवाया था ?? थैंक यू बोलना था उसे.. अगर वक्त रहते ऐसा न हुआ होता तो दिल्ली वाली खाला से मिलने जाते में दहशत होने लगती. शुक्र है मैं यूपी-बिहार से नहीं हूँ..
थैंक्स विजय जी फॉर स्पेयरिंग अस... एंड हैप्पी नागपंचमी टू...


सन्दर्भ :- भाजपा नेता विजय गोयल का बेतुका बयान 

पानी सस्ता है तो

पानी सस्ता है तो फिर उसका तहफ्फुज़ कैसा,
खून महंगा है तो हर शहर में बहता क्यूँ है ???
---- अज्ञात.

Monday, July 28, 2014

ज़िन्दगी ख़ाक न थी,

ईद की व्यस्तताओं के चलते दो-तीन दिन फेसबुक पर आना नहीं हो पायेगा. सभी दोस्तों को ईद की एडवांस मुबारकबाद.
इस बीच आप ज़िन्दगी चैनल पर आने वाले 'ज़िन्दगी गुलज़ार है' सीरियल के इस टाइटल ट्रैक का लुत्फ़ उठा सकते हैं. बेहतरीन अल्फाज़.. हदीका कियानी की बेहतरीन आवाज़... बतौरे-ईदी मुझ तक इसे पहुंचाने वाली Shireen Naaz बाजी को दिल से शुक्रिया...
ज़िन्दगी ख़ाक न थी, ख़ाक उड़ा के गुजरी
तुझ से क्या कहते, तेरे पास जो आते गुजरी..
दिन जो गुज़रा तो किसी याद की रौ में गुज़रा,
शाम आई तो कोई ख्वाब दिखाते गुजरी...
रात क्या आई के तनहाई के सरगोशी में,
गम का आलम था मगर सुनते सुनाते गुजरी
अच्छे वक्तों की तमन्ना में रही उम्र-ए-रवां,
वक्त ऐसा था के बस नाज़ उठाते गुजरी...
बेहतरीन... संगीत प्रेमी मित्रगण जरुर सुनें.