Monday, March 10, 2014

प्रश्नों का चक्रव्यूह

असमिया कवि समीर तांती की एक कविता....
---------------- प्रश्नों का चक्रव्यूह ------------------
समझ नहीं पाता मैं
रातों को क्यों फूटपाथ पर
सोते हैं आदमी ?

भरी दुपहरी की उजास में
क्यों खो जाते है
मासूम बच्चे ?
मालूम नहीं क्यों
मैदानों में दम तोड देती है मछलियाँ
ठूंठ बन जाते है पेड़ !
किसी से कुछ भी कहे बिना
हंसती-खेलती कोई नवयुवती
क्यों चुपके से लगा लेती है फाँसी ?
एक-दूसरे को यूं ही
कैसे भुला देते है ?
क्यों एक-दूसरे को मार डालते है लोग ?
मैं आज भी पूछ नहीं पाया किसी से
किस आघात से हो जाते है
विक्षिप्त... लड़के मेरे गाँव के ?
काश ! कभी, कोई मुझे ये बताता
क्यों कर देते है किसी को
जात से बाहर ?
क्यों चलाई जाती है गोली ?
क्यों जला दिए जाते है
पुल गाँव के ?
किसलिए जारी होते है
नोटिस
गरीब, भोले किसानों को ?
कोई तो बताये मुझे
किस अदालत में करूँ
मैं जीवन के लिए आवेदन ?
मुझसे मत पूछो मेरी नागरिकता
मैं तो लम्बे अरसे से हूँ
देशहीन...!!!
---------- अनुवाद नीता बैनर्जी द्वारा.

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