Saturday, September 27, 2014

ये ज़मीं बिक चुकी

ये ज़मीं बिक चुकी,
आसमां बिक चुका...
........ अब हवा, धूप, पानी खरीदेंगे हम...
........ अब हवा, धूप, पानी खरीदेंगे हम...


चाँद झुलसेगा, बेनूर होगी सुबह
ना अँधेरे उजाले में होगी सुलह
अब ज़हर में सनी होंगी फसलें नयी
बद्दुआ हमें देंगी नसलें नयी
.......... उनसे ज़ख़्मी कहानी खरीदेंगे हम
.......... अब हवा, धूप, पानी खरीदेंगे हम...


आँखें हरियाली को अब तरस जायेंगी
बदलियां आग बन के बरस जायेंगी
साथ कुदरत के खिलवाड़ हमने किया
जान के हर कदम पे है जोखिम लिया
........ बाग़ और बागवानी खरीदेंगे हम
........ अब हवा, धूप, पानी खरीदेंगे हम


बदबू अब हो रही वादियों में रवां
सांस लेना भी अब होगा दूभर यहाँ
जादूगरनी करप्शन की छल जायेगी
ये प्रदूषण की नागिन निगल जायेगी
........ सांस और जिंदगानी खरीदेंगे हम
........ अब हवा, धूप, पानी खरीदेंगे हम


स्पेशल नोट : शब्द तो गहरे हैं ही लेकिन इसे सुखविंदर की आवाज़ में सुनने का मज़ा ही कुछ और है. ट्राय कीजियेगा..
http://www.youtube.com/watch?v=M2aNY_Sbnow

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