Wednesday, September 10, 2014

कश्मीर के हालात

कश्मीर में हालात खराब हैं. लेकिन जैसे हर काले बादल की एक रुपहली किनार होती है उसी तरह इस आपदा से भी कुछ सकारात्मक प्राप्त किया जा सकता है. कश्मीर हमेशा से ही शेष भारत से कटा कटा रहा है. इसकी वजह चाहे स्थानीय लोगों का जायज/नाजायज रोष हो या अलगाववादी नेताओं की खुराफात. कश्मीरी अवाम हमेशा से संभ्रमित नज़र आया कि उसे किस तरफ होना चाहिए. खैर, इतिहास के काले पन्ने पलटे बगैर इस विनाश में निर्माण की संभावना को तलाशा जा सकता है. इस वक्त कश्मीर को मदद की जरुरत है. भारत सरकार ( मोदी सरकार ) और भारतीय सेना अपना काम इमानदारी से करती नज़र आ रही है. जिसके लिए उनकी सराहना की ही जानी चाहिए. कुछ और चीजें है जो की जा सकती है या जिन से बचा जा सकता है.

सब से पहली बात तो ये कि कश्मीरियों की सहायता हमारा फ़र्ज़ है ना कि उन पर हमारा अहसान. जब कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है तो उसके सुख-दुःख भी हमारे है. उनकी मदद उन पर अहसान जताकर नहीं की जानी चाहिए. मेरे कुछ मित्र ऐसी पोस्ट डाल रहे हैं जिनकी भाषा बेहद आपत्तिजनक है. मुसीबत से घिरे लोगों का मज़ाक उडाना, उन्हें किसी और से मदद मांगने की सलाह देना, क्रूरता है और ये हमारी संस्कृति का हिस्सा नहीं.

दूसरी और अहम बात ये कि ये आपदा ही कश्मीरियों और शेष भारत के बीच पुल का काम कर सकती है. मुसीबत के वक्त काम आने वाले का एहसानमंद रहना इंसानी फितरत है. दिलों से बदगुमानी के दाग धो देने का मौका मिला है. और अमन-चैन के लिए हर मुमकिन कोशिश करना हमारा फ़र्ज़ है. क्या पता इस आपदा से निपटने के बाद कश्मीरी अवाम को ये समझ आ जाए कि उसके सामने मौजूद विकल्पों में सबसे उम्दा विकल्प भारत जैसे उदार विचारधारा के मुल्क के साथ बने रहना ही है.

अगर इसकी संभावना है तो इस संभावना को हकीकत में तब्दील करने की कोशिश की ही जानी चाहिए. और इसमें सिर्फ सरकार अकेली कुछ नहीं कर सकती. हमें भी अपना योगदान देना होगा. आइये, सब मिलकर इस वक्त मुसीबतजदा लोगों की सहायता के लिए हरसंभव कोशिश करने का इरादा करें. बगैर किसी तानाकशी के.. आखिर यही तो हमारी सस्कृति है.. हैं न ??

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