Tuesday, August 5, 2014

कोई तो बात है

कोई तो बात है बाकी गरीब-खानों में,
वगरना जिल्ले-इलाही और इन मकानों में...
मुहाजिरों को पता है अज़ाब-ए-दरबदरी,
हयात काटनी पड़ती है शामियानों में...
ये जा के कौन बतायें शरीफजादों को,
खतायें पलती हैं अब तक यतीमखानों में...
हमारे खून से बनती है सैंकड़ों चीज़ें,
हमारे बच्चे मुलाजिम हैं कारखानों में....
चलो ये रात तवायफ के घर गुज़ार आयें,
है छान-बिन बहुत मजहबी घरानों में....
------ हबीब सोज़.

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