Saturday, May 10, 2014

असली राष्ट्रवाद

एक संवाद :
"मैं राष्ट्रवादी हूँ. इस देश के लिए अपनी जान भी दे सकता हूँ."
"भैया, उसकी जरुरत नहीं है. देश के लिए जान देने का काम जिन्हें सौंपा गया है वो इसे पूरी मुस्तैदी के साथ कर रहे हैं. बिना कोई शोर-शराबा किये. और वैसे भी तुम्हारे जान देने से होगा क्या ? सिवाय तुम्हारे परिवार पर विपत्ति टूट पड़ने के ? जान-वान देने की जगह तुम कुछ और करो. ऐसा कुछ जिससे ये साबित हो कि तुम अपने मुल्क से, इसके निजाम से बेइंतेहा प्यार करते हो. मसलन अगली बार जब बिना हेल्मेट तुम्हें कोई ट्रैफिक वाला रोके तो उसे पचास का नोट ना पकडाना, बल्कि कानूनन जो जुर्माना हो वो अदा कर देना. या फिर जब खरीदारी करने जाओ तो पक्का बिल लेना ताकि जो टैक्स तुम अदा करो वो देश के कोष में जमा हो. वो जो तुम्हें गुटखा खाकर यहाँ वहां थूकने की आदत है न उसे भी अगर त्याग सको तो सोने पे सुहागा. सड़कें इसी देश की है भाई और उन्हें गन्दा करना कम से कम ऐसे शख्स को शोभा नहीं देता जिसका देशभक्त होने का पुरजोर दावा हो. बाहरी मेहमान आते हैं तो इज्जत देश की ही जाती है. सरकारी ऑफिस में अपनी बारी जल्दी आने के लिए चपरासी को जो सौ का पत्ता पकडाते हो न वो भी एक किस्म का भ्रष्टाचार ही है. और तुमने उसे बढ़ावा देकर उसकी मुखालफत का हक खो दिया है. इस तरह के छोटे मोटे मामलों में रिश्वत का लेन-देन एक भ्रष्ट सिस्टम की नींव है. और इसे हम-तुम ही मजबूत बनाते है....."
".......याद है पिछले चुनाव में वोटिंग वाले दिन तुम सपरिवार पिकनिक मनाने गए थे. बीवी से कहा था के इन तीन-चार वोटों से क्या फर्क पड़ेगा ? तो भैया, इस बार ऐसा न करना. सिस्टम को कोसने का अधिकार हमें तभी है जब हमने इसकी प्रक्रिया में हिस्सा लिया हो....."
"............मेरे भाई, सिर्फ जान देने के नारे लगाने से कोई देशभक्त नहीं बन जाता. देशभक्ति तो इन छोटी छोटी बातों से साबित होगी. अपने देश के लिए मरो नहीं भाई, अपने देश के लिए जियो. इससे प्यार करो. इसमें रहने वाले लोगों से प्यार करो. इसकी संस्कृति, इसकी सभ्यता, इसकी अनमोल विरासत से प्यार करो. तब देखना किसी की हिम्मत नहीं होगी तुम्हारे देशभक्ति के दावे पर ऊँगली उठाने की. मेरी भी नहीं."

जय हिन्द...!!! वन्दे मातरम..!!!

No comments:

Post a Comment