Tuesday, January 28, 2014

आग

आग जंगल में लगी थी लेकिन,
बस्तियों में भी धुंआ जा पहुंचा
एक उडती हुई चिंगारी का,
साया फैला तो कहां जा पहुंचा

तंग गलियों में उमड़ते हुए लोग,
गो बचा लायें हैं जानें अपनी
अपने सर पर हैं जनाज़े अपने,
अपने हाथों में ज़बानें अपनी

आग जब तक ना बुझे जंगल की,
बस्तियों तक कोई जाता ही नहीं
हुस्न-ए-अशजार के मतवालों को,
हुस्न-ए-इंसान नज़र आता ही नहीं...!!

------------ अहमद नदीम कासमी.

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