Tuesday, January 28, 2014

आप तो ऐसे न थे.... या थे...???

देखिये जी, आप महान नारीवादी महिला है, कबूल.. साथ ही ये भी कबूल की आपका लिखा हजारों लोग पढ़ते है और पसंद करते है. अब आपने कहा है की मरहूम खुर्शीद अनवर साहब आपके पिता समान थे. आप उनके यहां सेफ महसूस करती थी. और वो वैसा कुछ कर ही नहीं सकते थे जैसा कि उनपर आरोप लगे. अब सिर्फ इतना बता दीजिये कि आपने ये सब पिछले तीन महीनों में क्यूँ नहीं कहा...? अगर यही बात आप उनपर आरोप लगते ही ताल ठोककर कहती तो शायद खुर्शीद जी वो कदम ना उठाते. आपकी बात लोग सुनते है तो क्यूँ नहीं आप तब उनके खुलकर समर्थन में आई...? तब जब उन्हें इसकी सबसे ज्यादा जरुरत थी...? आपके ये कहने से और कुछ भले ही ना होता कम से कम खुर्शीद जी को मानसिक संबल तो मिलता..

और कामरेड बंधुओं, जो लोग खुर्शीद जी के खिलाफ थे वो तो थे ही. आप तो उनकी तरफ थे ना.? जो खिलाफ थे वो तीन महीनों से फेसबुक पर लिखे जा रहे थे. जिसका की उन्होंने डटकर मुकाबला किया. जिस दिन इंडिया टीवी ने न्यूज़ चलाई आप ने बढ़ बढ़ कर इन्साफ को बधाइयां दी. इंडिया टीवी की तारीफ़ की और इसे एक 'बेहतर' कदम बताया. दूसरे ही दिन उन्होंने जान दे दी. जो बातें आप अब कह रहे है वो वक्त रहते कहते तो खुर्शीद जी को ये तो लगता कि कोई तो उनके साथ है. तो क्या ये मान लिया जाए कि खुर्शीद जी ने ख़ुदकुशी दुश्मनों की दुश्मनी से आजिज आकर नहीं बल्कि दोस्तों के दोगलेपन से घबराकर कर ली.? क्या आप 'प्ले सेफ' वाले मोड़ में थे..? बैकफूट पर खेल रहे थे ?

सवाल जायज है बुद्धिजीवियों लेकिन मुझे यकीन है आप अपनी चीख-चिल्लाहट में इसे नज़रअंदाज करने में कामयाब हो ही जाओगे. मरने वाला मर गया. अब चमकाते रहो उसकी लाश पर अपनी दुकान. ख़ास तौर से तब जब रोकने वाला भी कोई नहीं. अंग्रेज लोग शायद ऐसी ही स्थिति को विन-विन सिचुएशन बोल गए है...
किसी का भी यूं जान से जाना एक स्तब्ध करने वाली घटना है. और उससे ज्यादा दुखदाई वो तमाशा है जो उनकी मौत के बाद हो रहा है. अफ़सोस ये कि इनमे ऐसे नाम जुड़े है जिन्हें हम जैसे कमअक्ल लोग अपने रहनुमा समझते आये है. इनकी बातों से प्रभावित होते रहे हैं. अब धीरे धीरे तिलिस्म टूटने लगा है. ये बहुत गहरा अपेक्षाभंग है. और विश्वास की हत्या भी.

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