Saturday, December 7, 2013

मंदिर मस्जिद

एक नास्तिक मंदिर तोड़ने की बात करता है. लोग उसे गरियाते हैं, उसको भला बुरा कहते है और आगे बढ़ जाते हैं. कोई सीरियसली नहीं लेता.
एक नास्तिक मस्जिद तोड़ने की बात करता है. लोग उसे गरियाते हैं, उसको भला बुरा कहते है और आगे बढ़ जाते हैं. कोई सीरियसली नहीं लेता.

एक मुस्लिम मंदिर तोड़ने की बात करता है. तुरंत हिन्दू अस्मिता जाग जाती है. साले मुल्ले की हिम्मत कैसे हुई ? जिस आदमी ने महीनों से मंदिर की शक्ल भी ना देखी हो वो भी आस्तीनें चढ़ाकर मैदान में कूद जाता है. भगाओ इन म्लेच्छों को बाहर. आतंकी साले. देश का सत्यानास कर रखा है. एक तरह का कम्पटीशन शुरू हो जाता है कि कौन इस शख्स को सबसे ज्यादा गन्दी और यूनिक गाली देगा. एक पागल का प्रलाप पूरे मजहब को परखने का पैमाना बन जाता है. औरंगजेब, बाबर, जिन्ना, लादेन और पता नहीं किन किन मरे हुए लोगों के किये की सफाई जिंदा लोगों से मांगी जाती है. और अंतिम निष्कर्ष ये निकलता है कि ये लोग वफादार हो ही नहीं सकते. इन्हें तो दूर ही रखो.

एक हिन्दू मस्जिद तोड़ने की बात करता है. तुरंत इस्लाम खतरे में आ जाता है. काफिर की इतनी जुर्रत..? ये दोजखी कीड़ा खुद को समझता क्या है ? इसका तो वजूद मिटा देंगे हम. वो शख्स जिसने जुमे के अलावा कभी मस्जिद में कदम ना रखा हो वो भी मस्जिद का सबसे बड़ा मुहाफिज बनकर जंग में कूद जाता है. खूब तरीके से अगले की माँ बहनों से पारिवारिक रिश्ते स्थापित किये जाते है. ये भूल कर की पब्लिक फोरम पर गाली-गलौच कर के हम अपने ही संस्कार उजागर कर रहे हैं. अगले की आस्थाओं का भरपूर मजाक उड़ाकर और मारने, काटने, पीटने की करोड़ों धमकियां जारी करने के बाद अंतिम निष्कर्ष ये निकलता है कि ये कौम किसी की सगी नहीं हो सकती. इन्हें तो दूर ही रखो.

अजीब सर्कस है यार..!!

नफरत का बीज बोकर हम लोग मुहब्बत कि फसल की उम्मीद कैसे कर सकते है ? वही तो पायेंगे जो देंगे. गाली देंगे तो गाली ही वापस आएगी. लेकिन फूल देंगे तो यक़ीनन गुलदस्ता आएगा. इत्ती सी बात समझने के लिए कोई आलिम फाजिल होना पड़ता है ? हम अपने अपने धर्म की न जाने कितनी बातें खोज निकालते है जो हमारी नफरत को जस्टिफाई करती है. पर जो बेसिक शिक्षा है वो हम किस सफाई से नजरअंदाज़ कर जाते है. हर धर्मग्रन्थ की जो बुनियादी सीख है वो यही है की प्राणिमात्र से प्रेम करो. इसका मतलब ये हरगिज़ नहीं है की कुत्ते-बिल्लियों को गले लगाओं और इंसानों के गले काट दो. जब तक हम इंसान को धर्म/रंग/नस्ल आदि आदि चश्मे से देखना बंद नहीं कर देते तब तक हमारी इबादतों का, हमारी प्रार्थनाओं का कोई मोल नहीं. फिर भले ही पूरी दुनिया को मंदिर, मस्जिद, गिरजाघरों से पाट दो. अगर हमारे दिल में उस परमात्मा की करुणा का कोई अंश नहीं बचा है तो ये तय मानिए हम उसके द्वारा निर्मित सबसे बेहतरीन कृति से एक निकृष्ट प्रजाति में तब्दील हो गए है. और ये हमारा ही किया धरा है. इसे हमें ही सुधारना होगा.

"मंदिर की सीढ़ियों पे बैठके, मस्जिद से आती अजां सुनी मैंने
जहां नफरतों का वजूद ना हो, ऐसी दुनिया की तस्वीर बुनी मैंने
वो रास्ता जिस पे चल के, हुआ इंसानियत का कत्लेआम,
छोड़ उस रहगुजर को, राह अमन-ओ-मुहब्बत की चुनी मैंने."

1 comment:

  1. कट्टरता ही कट्टरता का पोषण करती है । मुस्लिम कट्टरता , हिन्दु कट्टरता की मौसेरी बहन है ।

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